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________________ के मन्दिर में दुर्लभ सम्राट् की अध्यक्षता में शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें जिनेश्वरसूरि विजयी हुए। तब दुर्लभ राजा ने खड़े होकर आचार्यवर को कहा- आपका आचार-विचार, ज्ञानध्यान और साधना उत्तम है, कसौटी पर खरी उतरी है। आप खरे हैं। तब से आपका अनुयायी वर्ग खरतरगच्छीय कहलाने लगा। प्र.602.खरतरगच्छ के प्रमुख चारित्रप्रिय, आचारज्ञ एवं विद्वद्वर्य आचार्यों की परम्परा के बारे में बताईये। उ. (1)आचार्य जिनेश्वरसूरि-खरतरगच्छ के आप आद्य आचार्य थे। जिनचन्द्रसूरि, अभयदेवसूरि, आदि अनेक आपके प्रभावशाली शिष्य हुए। आपका संस्कृत, प्राकृत भाषा पर गजब का अधिकार था। आपने पंचलिंगी प्रकरण, षट्थानक प्रकरण लिखे तो न्याय क्षेत्र में जैन दर्शन को प्रमालक्ष्म के द्वारा आलेखित करने का श्रेय भी आपको ही जाता है। (2)आचार्य जिनचन्द्रसूरि-अल्पायु में चारित्र पथ स्वीकार कर सुन्दर ज्ञानार्जन किया। संवेग, विराग रस से परिपूर्ण विस्तृत संवेगरंगशाला ग्रन्थ से आपकी विद्वत्ता से *************** 255 परिचित हुआ जा सकता है। (3)आचार्य अभयदेवसूरि-नवांगी वृत्तिकार के रूप में समस्त गच्छों में प्रसिद्ध, माननीय एवं पूजनीय आचार्य अभयदेवसूरि खरतरगच्छ की अनमोल धरोहर है। अशाता वेदनीय कर्म - उदय से शरीर में कुष्ठ रोग हो जाने पर आप अनशन करने को उद्यत हुए, तब शासन देवी ने प्रकट होकर कहाआचार्यवर! आप शासन के अप्रतिम विद्वान होंगे, यह मेरा ज्ञान कहता है। आपश्री अनशन स्थगित करें और स्तंभन नगर के बाहर सेढी नदी के तट पर भूगर्भ में स्थित पार्श्व प्रभु की प्राचीन प्रतिमा को प्रकट करें। उसके प्रक्षाल से आपका कुष्ठ रोग नष्ट हो जायेगा। खरतरगच्छ की परम्परा में बोला जाने वाला जयतिहुअण वही स्तोत्र है, जिसकी स्तुति से स्तंभन पार्श्वनाथ प्रकट हुए / उस प्रतिमा के प्रक्षाल जल से सूरिप्रवर का कुष्ठ रोग नष्ट हुआ। आपने स्थानांग से विपाक सूत्र, इन नौ आगमों पर विस्तृत टीका लिखी अतः आपको नवांगी वृत्तिकार कहा जाता है। पंचाशक प्रकरण वृत्ति आदि ****************
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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