________________ विधि का विवेचन है। (4)भक्त परिज्ञा- इस सूत्र में चार आहार का त्याग करके अनशन विधि का कथन है। (5)तन्दुलवैचारिक- अशुचि भावना की विवेचना से युक्त यह आगम वैराग्य रसवर्द्धक है। (6)गणि विद्या- ज्योतिष सम्बन्धी दिन, तिथि, लग्न, निमित्त आदि बातें इस ग्रंथ में बताई गयी हैं। (7)चन्द्र विद्या- राधावेध की भाँति आराधना में स्थिरता रखने का उपदेश इस ग्रन्थ में है। (8) देवेन्द्रस्तव - इन्द्रों द्वारा प्रभु स्तवना, उनका स्थान, आयुष्य, बल एवं सिद्धशिला का स्वरुप इसमें वर्णित है। (9)मरण समाधि- समाधि मरण की दिव्य प्रक्रिया, पाण्डवों के दृष्टांत आदि इस आगम के विवेच्य विषय यह ग्रंथराज है। (2)महानिशीथ - वर्धमान विद्या व नवकार की महिमा एवं उपधान तप-स्वरुप-संयम शुद्धि की महत्ता आदि अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य इस आगम में है। (3)दशाश्रुतस्कंध- इसमें बीस असमाधि स्थान, इक्कीस सबल दोष आदि का वर्णन है। कल्पसूत्र में वर्णित साधु समाचारी इस सूत्र के 8वें पर्युषणा कल्प से ही ली गयी है। (4)वृहत्कल्प - प्रत्याख्यान प्रवाद नामक पूर्व से उद्धृत इस सूत्र में श्रमण सम्बन्धी मूल व उत्तर गुणों के साथ उत्सर्ग–अपवाद मार्ग भी वर्णित है। (5)व्यवहार सूत्र-पापों की आलोचना के सम्बन्ध में विस्तृत अधिकार के साथ प्रायश्चित्त, पद आदि की विवेचना इस सूत्र में है। इसे दण्ड या नीति शास्त्र भी कहा जा सकता है। (6)जीतकल्पसूत्र-प्रायश्चित्त विधान से सम्बन्धित इस गंभीर ग्रंथ का पारायण गीतार्थ गुरुराज ही कर सकते हैं। **************** (10) संस्तारक - इसमें वर्णित अन्तिम समय में क्षमापना-विधि, भाव संथारा आदि का स्वरुप पठनीय प्र.592. छह छेद सूत्रों में किसकी विवेचना की गयी है? उ. (1)निशीथ - श्रमणाचार, प्रायश्चित्त, समाचारी से युक्त निशीथ अर्थात् मध्यरात्रि में शिष्य को पढ़ाने योग्य **************** 249