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________________ प्र.593. चार मूल सूत्र कौनसे हैं? प्र.595. आगमों के गूढ रहस्यों को उ. (1)आवश्यक सूत्र - चतुर्विध संघ समझने के लिये कौनसे साहित्य हेतु छह आवश्यक, पद-योग्यता, लिखे गये? पांच व्यवहार आदि तथ्यों से पूर्ण उ. आगम ज्ञान के गंभीर सागर है। यह सूत्र है। इसकी अतल गहराईयों में छिपे (2)दशवैकालिक सूत्र- दस अध्ययन रहस्यों के मोती पाने हेतु पाँच प्रकार एवं दो चूलिकाओं से अलंकृत का व्याख्या-साहित्य लिखा गया, साधु-समाचारी व संवेग-निर्वेद जिसे पंचांगी कहा जाता है। पोषक उपदेशों से परिपूर्ण यह ग्रंथ (1)नियुक्ति-एक पद, शब्द के . आज सर्वाधिक महत्त्व रखता है। अनेक अर्थ होते हैं। उनमें से प्रसंग (3)उत्तराध्ययन सूत्र - कर्म, वैराग्य, तथा कालानुरुप कौनसा अर्थ विनय, साधना, अप्रमाद, त्याग, ग्रहण करना, यह नियुक्ति लेश्या आदि अनेक विषयों एवं साहित्य बताता है। इसमें शब्दों के रसप्रद घटनाओं से सजा यह निश्चित अर्थों का ही प्रतिपादन ग्रन्थ परमात्मा महावीर की किया गया है। इनकी भाषा प्राकृत अन्तिम देशना का साक्षी स्वरुप है। नियुक्तिकार के रूप में आचार्य (4)ओघ–पिण्ड नियुक्ति सूत्र- गौचरी भद्रबाहु प्रसिद्ध है। आज दस आगमों से सम्बन्धित 42 दोषों से बचने की पर नियुक्तियाँ प्राप्त होती हैं। _ विवेचना इस सूत्र में हैं। (2)भाष्य- नियुक्तियों में मुख्यतः प्र.594. दो चूलिकाएँ कौनसी हैं? विशिष्ट शब्दों की ही विवेचना होने उ. (1)नंदी सूत्र - पाँच प्रकार के ज्ञान, से अर्थ गूढ तथा संक्षिप्त होते हैं। द्वादशांगी आदि की संक्षिप्त उन्हें विस्तारपूर्वक समझने के विवेचना को समेटे यह ग्रन्थ मंगल लिये प्राकृत भाषा में जिन स्वरुप है। पद्यात्मक ग्रन्थों की रचना हुई, वे (2)अनुयोगद्वार सूत्र- यह समस्त भाष्य कहलाये। आगमों को समझने की शैली आगम मर्मज्ञ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण समझाता है। तथा संघदासगणि भाष्यकार के रुप
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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