SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दान, स्वाध्याय आदिआराधना करना। 3. यथाशक्ति उपवास आदितप करना। 4. किसी पर्व तिथि को एक कल्याणक हो तो एकासन, दो कल्याणक हो तो नीवी और तीन हो तो आयम्बिल तप की आराधना करनी चाहिए। 5. अधिकतम मौन एवं जाप से आत्मिक ऊर्जा का भण्डार परिपूर्ण रखना। 6. स्नात्रपूजा, मुनि-वन्दना, प्रवचन श्रवण, देव-पूजन करना। 7. ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना। विष्णु पुराण में कहा गया है कि जो पुरुष इन पर्यों में शरीर की शोभा करता है, अब्रह्मचर्य का सेवन करता है, वह नरक में जाता है। मनुस्मृति में तो यहाँ तक कहा गया है कि नित। कामभोग करने वाला ब्राह्मण यदि इन पर्वतिथियों में कामभोग से विरत होता है तो वह नित्य . ब्रह्मचारी कहलाता है। प्र.574.पर्व तिथियों में क्या-क्या नहीं करना चाहिये? उ. 1. पर्वतिथियों में क्रोध-मान- माया लोभादि अवगुणों का सर्वथा त्याग करना चाहिये। 2. इन पावन दिनों में दुर्गतिकारक अनन्तकाय, अभक्ष्य भक्षण एवं रात्रि भोजन का सर्वथा निषेध करें क्योंकि ये सब घोर अशाता वेदनीय बंध, अपंगता, बहरापन, कुष्ठ रोग आदि विघ्नों के प्रमुख कारण हैं। 3. मकान-दुकान का निर्माण, खेती, रंग-रोगान आदि महासावद्यकारी आरंभ- समारंभ का त्याग करना। 4. यद्यपि श्रावक को सर्वदा सचित्त आहार का त्याग करना चाहिए। संभव न हो तो पर्वतिथियों में अवश्यमेव सचित्त का निषेध करना चाहिये। .. 5. स्नान करना, शोभा-विभूषा करना, कपड़े धोना, गाड़ी-हल जोतना, यात्रा करना, अन्न कूटना-पीसना, यंत्र * चलाना, फल-फूलादि तोड़ना, इन सभी का पर्व दिनों में वर्जन करना चाहिये। 6. निंदा, विकथा, चुगली, झूठ, ___ माया आदि को मन से देश निकाला देना चाहिये। 7. मादक पदार्थ यथा अफीम, गांजा, चरस, भांग, तम्बाकु आदि का सर्वथा वर्जन करना एवं बीडी, सिगरेट, हुक्का, गुटखा को देखकर वैसे ही आँखें हटा लेना जैसे तपती दोपहर में सूर्य पर जाती निगाहें तुरन्त हट जाती है। 8. टी.वी., इन्टरनेट, कम्प्यूटर, सिनेमा, पर्यटन, क्रिकेट, हॉकी, ताश आदि पर दृष्टिपात भी नहीं करना चाहिए।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy