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________________ मृत्यु कैसे बने महोत्सव? उ. प्र.563. मृत्यु किसे कहते है? . उ. आयुष्य कर्म के समाप्त होने पर शरीर से प्राणों का निकलना मृत्यु कहलाती उ. प्र.564. मृत्यु होने पर आत्मा मर जाती है या जीवित रहती है? चार्वाक दर्शन के अतिरिक्त समस्त दर्शनों में माना गया है कि आत्मा का न जन्म होता है, न मृत्यु होती हैं। वह कृत कर्मानुसार अन्य गति, योनि एवं पर्याय को प्राप्त करता है और समस्त कर्मों का क्षय हो जाने पर भगवान बन जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिस प्रकार वस्त्र के जीर्ण-शीर्ण होने पर उसे छोडकर नया परिधान धारण किया जाता है वैसे ही शरीर के शक्तिहीन एवं सड-गल जाने पर आत्मा (जीव) उसे छोड़कर नूतन शरीर को धारण करता है। समस्त कर्मों का क्षय होने पर जीव अशरीरी भगवद्-स्वरूप को प्राप्त हो जाता है। प्र.565. मरण कितने प्रकार के कहे गये हैं? उ. दो प्रकार के (1)बाल मरण-अज्ञानी का मरण / (2)पण्डित मरण- साधु/ज्ञानी का सद्भावना/ समाधि युक्त मरण। इन्हें क्रमशः अकाम और सकाम मरण कहा गया है। प्र.566.बाल मरण कितने प्रकार का कहा गया है? **************** 233 बारह प्रकार का(1)वलय मरण- भूख-प्यास से व्याकुल होकर आर्तध्यान पूर्वक मरना। (2)वशात मरण- इन्द्रिय-विषयों में आसक्त होकर मरना। (3)अन्तर्शल्य मरण- मन में कपट रखकर मरना। (4)तद्भव मरण- मनुष्य, तिर्यंच का मरकर पुनः उसी भव में जाना। (5)गिरिपतन मरण- पर्वत से गिरकर मरना। (6)तरूपतन मरण- पेड़ से गिरकर __ मरना। (7)जलप्रवेश मरण-पानी में डूबकर मरना। (8) ज्वलनप्रवेश मरण- अग्नि में जलकर मरना। (9)विषभक्षण मरण- जहर खाकर मरना। (10) शस्त्रावपाटन मरण- शस्त्र से कटकर मरना। (11) वेहाय मरण- फाँसी लगाकर मरना। (12) गृद्धप्रविष्ट मरण- मृत गिद्ध आदि के कलेवर में प्रवेश करके मरना। इस प्रकार बाल मरण के अनेकानेक भेद होते हैं। सांसारिक पदार्थों की आकांक्षा या राग-द्वेष, क्रोध-मानमाया-लोभ, भय, दुःख के वशीभूत *********** *****
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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