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________________ (11) बड़े-बुजुर्गों के प्रति विनय, आदर एवं कृतज्ञता के भाव रखना। उनके आदेश- निर्देश की अवहेलना नहीं करना। (12) परिवारजनों को प्रेम, स्नेह तथा सद्भाव के धागे में पिरोना ।हिल - मिलकर रहने की शिक्षा देना। एक-दूसरे के सुख-दुःख में अपना सुख-दुःखमानना। प्र.562.सुन्दर जीवन जीने के नुस्खे बताईये। ___(1)सभी के साथ मधुर व्यवहार करना। (2)हित, मित एवं प्रिय वचन बोलना / (3)किसी की निंदा नहीं करना / (4)बिना पूछे किसी की चीज नहीं लेना। (5)भेदभाव नहीं करना। (6)सज्जनों की संगति करना। (7)धर्म एवं कुल कलंकित हो, ऐसे कार्यों से बचना। (8)प्रामाणिकता, सत्यवादिता व सरलता से छलकता पारदर्शी व्यवहार अपनाना। (9)गुणीजनों की प्रशंसा करना। (10) साधर्मिक भाई का प्रणाम से तथा अन्यधर्मी का जय-जिनेन्द्र से अभिवादन-बहुमान करना। (11) अपशब्द, अपमानजनक शब्दों का प्रयोग न करना। (12) समय का पाबंद होना / (13) शांति को जीवन का सर्वोत्तम वैभव मानना / (14) मुसीबत में धैर्य रखना / (15) नकारात्मक सोच से बचना क्योंकि सकारात्मक सोच जीवन को स्वर्ग से सुन्दर बनाती है एवं नकारात्मक सोच नरक से खतरनाक, दर्दनाक बनाती है। (16) किसी के भी अहित का विचार नहीं करना क्योंकि कर पाना व्यक्ति के हाथ में नहीं है पर कर्म बंध हो जाता है। (17) कार्य के परिणाम पर सदा दृष्टि रखना। (18) गलती होने पर तुरन्त स्वीकार करना। (19) परिश्रम को सफलता व सुख की चाबी मानना। ********* ****** 232 ***************
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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