________________ कोयला, ईट, भट्टी, आदि वस्तुएँ बनाना/बेचना इंगाल कर्म कहलाता है। 2. वन कर्म- पेड़-पौधे, वन आदि लगाने/कटवाने का व्यापार वनकर्म कहलाता है। 3. शकट कर्म- स्कूटर, कार, मोटर, रेल, जहाज, वायुयान आदि अथवा उसके पार्टी बनाना/ बेचना शकट कर्म कहलाता है। 4. भाटक कर्म- जमीन, मकान, वाहन आदि किराये पर देना भाटक कर्म कहलाता है। 5. स्फोटक कर्म- पत्थर, कोयले आदि की खान, कुआँ, बावड़ी, तालाब आदि खुदवाने अथवा खोदने का कार्य करना, बोरिंग कार्य, जमीन तोड़ने/फोड़ने का कार्य स्फोटक कर्म कहलाता है। 6. दंत वाणिज्य- हाथी दांत, रेशम, कस्तूरी, सीप, शंख, सींग, कोडी, बाघ के नाखून, हरिण-बाघादिक के चर्म का व्यापार दंत वाणिज्य कहलाता है। त्रस जीव और उन जीवों के अंगों का व्यापार करना दंत वाणिज्य कहलाता है। .. 7. लक्ष वाणिज्य- लाख, साबुन, * * 225 नील, गोंद, खार, रंग, नमक, मेनसिल आदि का व्यापार करना लक्ष वाणिज्य कहलाता है। 8. रस वाणिज्य- शहद, मक्खन, चर्बी, मांस, मदिरा, दूध, दही, घी, गुड़, तेल, शक्कर आदि का व्यापार करना रस वाणिज्य कहलाता है। 9. केश वाणिज्य- पशु/मनुष्य के बालों का, पशुओं के पंख, चमड़े आदि का व्यापार करना केश वाणिज्य कहलाता है। 10.विष वाणिज्य- अफीम, चरस, गांजा, जहर आदि विषेले पदार्थों का, घातक अस्त्र-शस्त्र (छुरी, तलवार, बंदूक आदि) का व्यापार करना विष वाणिज्य कहलाता है। 11.यंत्रपीलन कर्म- चरखा, मिल, प्रेस, कोल्हू, चक्की, घाणी आदि बनाना, लगाना अथवा औद्योगिक प्लान्ट्स की स्थापना करना यंत्रपीलन कर्म कहलाता है। 12.निलांछन कर्म- बैल, घोड़े आदि पशुओं को नपुंसक बनाना, डाम देना, पूंछ काटना, नाक-कान छेदने/ छिदवाने का कार्य करना निर्लाछन कर्म कहलाता है। 13.दवदान कर्म- जंगल, गाँव, घर, * * *