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________________ नीति-न्याय से करे व्यवसाय प्र.554.धन का उपार्जन किस प्रकार अच्छा माल दिखाकर गलत माल न करना चाहिये? . देना, कम दाम में सौदा करने के बाद एक जिनाज्ञापालक श्रावक धन का मूल्य बढ़ जाने पर वचन से पीछे नहीं उपार्जन इस प्रकार करता है कि धर्म हटना, ये नियम श्रावक को विशेष किसी प्रकार से उपेक्षित न हो। धर्म रूप से ध्यान में रखने चाहिये। को ताक पर रखकर व्यक्ति यदि मुनाफा भी मर्यादा और नीतिमत्ताधनार्जन करता है तो निश्चित रूप से पूर्वक लेना चाहिये। . .. वह श्रावकत्व की गरिमा को खो देता व्यापार में इतना भी उलझना नहीं है। चाहिये कि आप अपने परिवारजनोंप्र.555.धन कमाते समय श्रावक को पुत्र-पुत्री आदि को. समय और किन-किन बातों का ध्यान रखना संस्कार ही न दे पाये। चाहिये? ऐसे धंधे भी नहीं करने चाहिये जो उ. नीति और न्याय से धनार्जन करना परमात्मा के द्वारा निषिद्ध है। चाहिये / इससे प्राप्त द्रव्य स्थिर रहता प्र.556. श्रावक के लिये कौनसे व्यवसाय है एवं सुख-शान्ति का कारण बनता __ परमात्मा महावीर के द्वारा निषिद्ध है। अनीति से व्यक्ति भले ही विशाल राशि का संग्रह कर ले, महल चुन ले उ. जिन व्यापारों में महारंभ-समारंभ परन्तु जीवन में सुखी नहीं हो पाता है (हिंसा) होता है, महालोभ का पोषण क्योंकि अन्याय की आय हजार रोग होता है और जिनके कारण जीव एवं जीवन भर की अशांति साथ लेकर नरक आदि दुर्गतियों मे जाता है, उन आती है। पन्द्रह व्यापारों का प्रभु ने निषेध किया माल में मिलावट न करें, झूठ का है। उन्हें पन्द्रह कर्मादान के रूप में सहारा न ले, क्योंकि प्रामाणिकता जाना जाता हैऔर प्रतिष्ठा जीवन की सर्वोत्तम 1. इंगाल कर्म- कुंभकार, स्वर्णकार पूँजी है। __ आदि के कार्य करना तथा चूना, * *** **** * 224 *****
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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