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________________ (34) जो चीज जहाँ से उठायी है, पुनः ____ वहीं पर रखनी चाहिये। (35) गुटखा आदि नहीं चबाना चाहिये / यदि आप गुटखा, पान आदि चबाते हैं तो पीक पीकदानी में थूकना चाहिये। लोग स्वयं ही अपनी बिल्डिंग आदि की दीवारों पर, सीढ़ियों पर पीक थूक-थूक कर गंदा करते हैं, यह पढ़े-लिखे मूर्ख की सबसे बड़ी पहचान है। प्र.553. महाराजश्री! आप सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री को भी हिंसक बताते हैं, इसे भी जरा स्पष्ट कीजिए। सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री यथा - लिपिस्टिक, शेम्पु, नेलपॉलिस, सेन्ट, इत्र, क्रीम, साबुन आदि में बेजुबान, निर्दोष, मूक जानवरों की चर्बी, खून, हड्डी का चूर्ण एवं अनेक अवयवों-रसों को मिलाया जाता है। बाजार में आने से पहले उन पदार्थों के भयंकर एवं प्राणलेवा प्रयोग खरगोश, चूहे, बन्दर, चिडियाँ, कोयल आदि प्राणियों पर किये जाते हैं, और कई बार प्रयोगों के दौरान वे जीव मर भी जाते हैं या फिर आंखों की रोशनी खो देते हैं। घण्टों तक तडफते रहते है। साबुन में चर्बी मिलायी जाती है। टूथपेस्ट में अण्डे का रस, हड्डी का पाउडर आदि मिलाते हैं। इन सबके उपयोग से जैन श्रावक, जिसका जीव दया एवं करूणा पहला कर्तव्य है, वह भी जाने-अनजाने उनकी अनुमोदना एवं उपयोग कर बैठता है। माना कि दांतों को साफ करना है तो अनेक अहिंसक आयुर्वेदिक दंतमंजन आज बाजार में उपलब्ध है। सौन्दर्य प्रसाधन से रोम - रोम से हमारे द्वारा ली जाने वाली प्राणवायु के द्वार बंद हो जाते हैं। फलतः व्यक्ति रुग्ण हो जाता है। रोग प्रतिरोधक कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं। जरूरी हैं कि हम अपना निखार गुणों से करें। पदार्थ की खुश्बू कुछ पलों तक पर गुणों की खुश्बू जीवन भर व्यक्ति को सुगंधित, सुरक्षित और सुन्दर बनाये रखती है। उ ** **** ******* 223
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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