________________ सके। (23) तालाब, नल, वर्षा आदि के बिना माप के पानी में स्नान नहीं करनी चाहिये। (24) एक बार रात्रि-स्नान करने से नगर को जलाने के समान पाप लगता है, अतः रात्रि स्नान का त्याग करना चाहिये। (25) वर्षाभाव में तथा गर्मी-सर्दी का आधिक्य होने पर आकुल-व्याकुल नहीं होना चाहिये क्योंकि यह सब प्रकृति के अधीन हैं और जो व्यवस्था स्वाधीन नहीं हैं, उसके लिये राग-द्वेष करना निरर्थक कर्मबंधन का प्रमुख कारण है / (26) घर, तीर्थस्थान, सराय आदि से निकलते समय अनावश्यक हिंसा से बचने के लिये पंखा, लाईट, नल आदि का जरूर ध्यान रखना चाहिये। (27) गिजर का पानी अनछना होने से उसका उपयोग नहीं करना चाहिये। कूलर का पानी दूसरे दिन बासी होने से उसका वर्जन करना चाहिये। (28) बासी पानी वाले घड़े को छाने हुए पानी से धोने पर भी वह बासी ही कहलाता है अतः प्रतिदिन सूखा हुआ घड़ा ही उपयोग में लेना चाहिये। (29)पानी आदि का घड़ा नित्य बदलना चाहिये अन्यथा उसमें हरीतवर्णी निगोद के जीव उत्पन्न हो सकते हैं। (30) किसी पदार्थ में जीव पड़ जाने पर उसे धूप में नहीं रखना चाहिये। जयणापूर्वक निरवद्य स्थान पर रखना चाहिये। (31) फर्नीचर, पलंग, बिस्तर आदि में खटमल उत्पन्न होने पर उसे डंडे से नहीं झटकना चाहिये तथा धूप में भी नहीं रखना चाहिये क्योंकि इससे जीव हिंसा का पाप लगता है। (32) वाहन चलाते-चलाते मोबाईल से या व्यक्ति से बात नहीं करनी चाहिये क्योंकि ध्यान चलित हो जाने पर स्व-पर के प्राण संकट में पड़ जाते हैं। (33) किसी भी सावद्य-पापकारी दुकान, मकान, वस्त्र, स्थान, वाहन आदि सांसारिक पदार्थों की अनुमोदना, प्रशंसा एवं प्रेरणा नहीं करनी चाहिये। पाप बंध का यह विशेष कारण है। **************** 222 ****************