________________ टेढे-मेढ़े या उल्टे रखने चाहिये ताकि जीव-जंतु उसमें गिरकर मृत्यु और भय को प्राप्त न हो। (11) जिन वस्तुओं के निर्माण में पंचेन्द्रिय की हिंसा होती है, ऐसी पंख वाली पोशाकों, हाथी दांत वगैरह की वस्तुओं को काम में नहीं लेना चाहिये, क्योंकि इससे हिंसा को प्रेरणा मिलती है। (12) सूर्यास्त के बाद विपुल जीवोत्पत्ति होने से अनावश्यक रात्रि भ्रमण से बचना चाहिये। (13) हिंसक जाति को बछड़ा, भैंसा आदि पशु नहीं बेचने चाहिए। (14) मृतक की राख आदि को नदी, तालाब आदि में नहीं डालने चाहिये क्योंकि इससे जल में स्थित अनेक जीव मर .. जाते हैं। जाते हैं। (15) मच्छर, मक्खी आदि को मारने वाली दवा, लक्ष्मणरेखा आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए। (16) नाली, गट्टर आदि में लघुनीति बड़ीनीति नहीं करनी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उसमें रहे हुए अनेक त्रस-स्थावर जीवों की हिंसा होती है, असंख्य सम्मूर्छिम जीवों की उत्पत्ति 2028--3-9-2--- --*** 221 होती हैं एंव पर्यावरण प्रदूषण से अनेक आपदाओं को खुला आमंत्रण मिलता है। (17) ईंधन, लकड़ी, गोबर के कंडे देखकर और ठपका देकर जलाने चाहिये ताकि बिच्छु, कंसारी आदि जीवों की हिंसा न हो। (18) तालाब, नदी, कुएँ आदि में कूदकर या अन्दर घुसकर स्नान नहीं करना चाहिये क्योंकि शरीर की गर्मी और पसीने से तथा शरीर के आघात से बहुत से जीव मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। (19) दीपक को खुला नहीं रखना .. चाहिए। उसे जीवों की रक्षा के लिए ढककर रखना चाहिए। (20)धान्य का इतना संग्रह नहीं करना चाहिये कि उपयोग करने से पूर्व उसमें जीवोत्पत्ति होजाये। (21) बुहारी (झाडू) कोमल रखनी चाहिये क्योंकि कठोर झाडू का प्रयोग करने से कोमल जीवों को पीड़ा होती है, कभी-कभी वे जीव मर भी जाते हैं। (22) चूल्हा, चक्की, उखल, रसोईघर में चंदरवा अवश्य बांधना चाहिये ताकि अनावश्यक हिंसा से बच ***** ***** **