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________________ एवं जिनमें मांस, अस्थि, रूधिर आदि का उपयोग हुआ हो, ऐसी औषधि का त्याग करना चाहिये। (3)शहद का सर्वथा त्याग करना / चाहिये क्योंकि इससे जीव भारी पापकर्मा बनता है। (4)कालातिक्रम के उपरान्त आचार, मुरब्बा, शर्बत आदि का उपयोग नहीं करना चाहिये क्योंकि इनमें त्रस जीवों की उत्पत्ति हो जाती (5)दूध की भाँति मलाई भी बासी होती है, अतः दो-तीन दिन तक मलाई का संचय नहीं करना चाहिये। (6)जिनके आलू का सर्वथा त्याग है, उन्हें आलू की पपड़ी का भी त्याग करना चाहिये।। (7)आमरस आदि में बर्फ नहीं डालना चाहिये, अन्यथा वह अभक्ष्य कहलाता है। (8)अदरक त्यागी को बाजार की चाय पीने से पहले इस बात की पुष्टि करनी चाहिये कि कहीं वह अदरक मिश्रित तो नहीं है। (9)बंद काजू, मूंगफली आदि का उपयोग नहीं करना चाहिये, क्योंकि उनमें लट, इल्ली आदि जीवों की संभावना रहती है। (10)आम चूसकर नहीं खाना चाहिये। टमाटर, ककड़ी, सेब आदि फल भी बिना सुधारे नहीं खाने चाहिये क्योंकि उनमें द्वीन्द्रिय आदि जीवों की संभावना रहती हैं। (11) बाजार का बना आंवला, नींबू, मिर्ची का अचार अभक्ष्य होने से सुश्रावक के लिये त्याज्य कहा गया है। (12) लीलोतरी के त्यागी को ध्यान रखना चाहिये कि अमरूद, आम, केला भी लीलोतरी ही है। (13) नियमधारी के लिये फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा से आषाढ़ शुक्ला चतुर्दशी तक केवल बादाम ही काम आती है। चातुर्मास में पहले दिन की फोडी हुई बादाम दूसरे दिन त्याज्य है और सिक जाने पर वह सात दिन तक ग्राह्य है। (14) साबुदाने का निर्माण हिंसापूर्वक होने से उसका जिनाज्ञा पालक को त्याग करना चाहिये। (15) रात्रि बीतने के साथ मावा बासी हो जाता है। घी में अच्छी तरह सेक लेने पर बासी नहीं माना गया है। (16) नींबू के सत का उपयोग श्रावक __को नहीं करना चाहिये क्योंकि
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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