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________________ जितनी जयणा, उतनी शाता प्र.545. महाराजश्री! आजकल देख रहे हैं में ही अनेक महारोगों एवं अशाता से कि अल्पवय में ही व्यक्ति केंसर, , . ग्रस्त हो रहा है और भोगोपभोग के बी.पी., कॉलेस्ट्रॉल, हृदयघात आदि बीच भी दुःख और बैचेनी से जी रहा रोगों से ग्रस्त हो जाता है। अच्छी, गरिष्ठ, महंगी स्वास्थ्योपयोगी जैसे जैसे जीवन में यतना आती सामग्री यथोचित मात्रा में लेने पर है, पाप कार्यों में मन पीडित होता है, भी जीवन में शाता, समाधि और वैसे वैसे अशाता का बंध कम और स्वास्थ्य का नितान्त अभाव शाता का बंध अधिक होता जाता है। दृष्टिगत हो रहा है, आखिर . अतः ‘आया तुले पयासु' प्राणियों के इसका कारण क्या है? प्रति आत्मा तुल्य भावना का मंत्र रटते उ. इसका मूल कारण है-जयणा का रहो और 'समया सव्व भएसु' अभाव / शास्त्रों में 'जयणाए धम्मो' समस्त जीवों के प्रति समभाव बनाते जयणा (यतना) को धर्म कहा गया है। हए अप्रमत्त होकर विचरण करो। यदि जीवन में जयणा, विवेक एवं प्र.546.भोजन सम्बन्धी जयणा बताईएँ। उपयोग दृष्टि है तो व्यक्ति पाप कर्म उ. (1)यथासम्भव बाजार की मिठाई, करता हुआ भी अल्पकर्म का बंध समोसे आदि तले हुए पदार्थ, करता है। दशवैकालिक सूत्र में कहा चाट-पकोड़ी, पानी-पतासे आदि गया है का त्याग करना चाहिये क्योंकि जयं चरे जयं चिट्टे, जयं आसे जयं सए। उसमें डाली गयी वस्तुएँ शुद्ध जयं भुजंतो भासंतो, पाव कम्मं न बन्धई।। नहीं होती, उसमें इल्ली, लट आदि जयणा और विवेक पूर्वक चलने, जीवों का समारंभ होता है। इस बोलने, उठने, बैठने, खाने से पाप कर्म कारण उनका भक्षण शरीर, धर्म का बंध नहीं होता है। आज जीवन में एवं आत्मा, तीनों के लिये जयणा का सर्वथा अभाव दृष्टिगत हो हानिकारक बनता है। . रहा है, इस कारण व्यक्ति अल्पकाल . (2)संस्कारों को विकृत बनाने वाली
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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