SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इसके निर्माण में अत्यन्त हिंसा होती है। (17) छाछ में रहा हुआ मक्खन ही भक्ष्य होता है। छाछ से अलग करते ही उसमें जीवोत्पत्ति शुरू हो जाती है और छाछ से अलग हुए मक्खन को पुनः छाछ में डालने पर भी वह अभक्ष्य ही कहलाता है। (18) प्रातःकाल में जमाया दही सतरह प्रहर तक और शाम को जमाया दही बारह प्रहर तक भक्ष्य होता है। (19) सब्जी और फल सुधारते समय टी.वी., गपशप आदि का त्याग करना चाहिये ताकि जयणा धर्म का पालन हो। (20) कच्ची अनार, सलाद आदि सचित्त पदार्थों का एकासन, बियासन की तपस्या में त्याग करना चाहिये। (21)जयणा का अभाव होने से रात्रि या अंधेरे में भोजन नहीं बनाना चाहिये। . .. (22) साथ मिल-बैठकर एक थाली में ___नहीं खाना चाहिये। (23) पापड़ के लोए दूसरे दिन बासी होते हैं। ****** ** 214 ** *
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy