________________ उ. प्र.532. महाराजश्री! वर्तमान में हुए वैज्ञानिक प्रयोगों के द्वारा आलू पेड़ पर लगने लगा है, उसका वर्ण टमाटर की भाँति रक्त हो गया है तब तो आलू आदि खा सकते हैं ना? नहीं! क्योंकि जमीन के अन्दर उगने वाली हर चीज त्याज्य है और बाहर उगने वाली ग्राह्य, ऐसा समझना भूल है तथा तत्त्व-ज्ञान का अभाव है। आलू वृक्ष पर लगे अथवा वर्ण बदल जाये फिर भी उसमें जिनोक्त साधारण वनस्पतिकाय के लक्षण पाये जाने पर वह त्याज्य ही है। मूंगफली भूमि में उगती है परन्तु उसमें अनन्तकाय के लक्षण नहीं होने से वह त्याज्य नहीं कही गयी। प्र.533. महाराजश्री! हम कन्दमूल छोड़ना तो चाहते हैं, अनेक बार नियम भी ले चुके हैं पर छूटता नहीं, क्या करें? आप बार-बार कंदमूल के भक्षण से होने वाली हानियों का स्मरण करें तथा जीव-करूणा के भावों को प्रोत्साहित करें। सोचे कि जीभ का स्वाद पल दो पल का है, नरक, तिर्यंच आदि की वेदना हजारोंलाखों-करोड़ों- अरबों वर्षों की! इससे परभव में न तो जैन धर्म मिलेगा, न मनुष्य या देव का भव / जब स्पर्श करने से ही उन्हें भयंकर वेदना होती है तो फिर उन्हें कच्चा खाने या अग्नि में पकाने, छिलने, काटने से कितनी वेदना होती होगी, यह पुनः पुनः चिन्तन करके छोड़ने का संकल्प तथा साहस करें तो जरूर त्याग होगा। हमेशा खाने वाले को कुछ दिन अटपटा लगेगा तथा भोजन में नीरसता प्रतीत होगी पर शनैः शनैः आप इस समस्या से उबर जायेंगे। तब आपको स्वयं ही प्रतीत होगा कि कन्दमूल छोडकर मैंने आत्म–हित का जो कदम उठाया है, वह निश्चित ही मेरे लिये अभिनन्दनीय है। तब आपकी प्रसन्नता तथा शाता क्रमशः बढती जायेगी। *************** 206 **** ******* **