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________________ मांस खाता है और वह घर श्मशान के इन्द्रिय-विषयों पर विजय प्राप्त समान है। करनी चाहिये। मनुस्मृति में पांचवें अध्याय के पांचवें प्र.531.सोंठ की तरह आलू को सूखाने श्लोक में मोक्षकामी एवं सद्गति- पर भी उसके खाने का भला इच्छुक के लिये लहसुन, प्याज, निषेध क्यों? गाजर आदि के भक्षण का निषेध उ. सूखी सौंठ का उपयोग स्वाद-पोषण किया गया है। के लिये नहीं बल्कि दवा के रूप में (1)आलू आदि भक्षण से जीव की किया जाता है। स्वाद लोलुपता बढती है, (1)आप ही बताये। एक व्यक्ति, जो तदनन्तर वह रागवशात् आलू, एक दिन में एक किलो आलू खा प्याज, लहसुन आदि में उत्पन्न सकता है, वह क्या एक किलो सोंठ खा सकता है? नहीं खा होता है और असंख्य-अनन्तभवों तक उसी में जन्म-मरण करके सकेगा। आलू की तरह यदि सोंठ की सब्जी बनती तो अवश्य ही असह्य दुःख प्राप्त करता है। परमात्मा ने निषेध किया होता। (2)अनन्तकाय के भक्षण से जीव को अनन्त जीवों की हिंसा का पाप (2)आलू की चिप्स बनाने से पहले उसका समारंभ करना पडता है लगता है, परिणामतः वह दुर्गति में परन्तु सोंठ, हल्दी आदि स्वयं ही जाता है। सूख जाती है। (3)जीवदया, करूणा, अनुकम्पा जैसे (3)आलू, गाजर आदि को सूखाया शुभ विचार नष्ट होते जाते हैं और जाये तो वे सड जाते हैं परन्तु जीव मोक्ष से दूर होता जाता है। सौंठ, हल्दी में इस प्रकार की (4)बुद्धि, मन आदि तामसिक-हिंसक विकृति नहीं आती। बनते जाते हैं। सन्मति नष्ट हो (4)दवा रूप खाने की अपेक्षा जाती है। स्वाद-आसक्ति का पाप हजारों(5)अशाता वेदनीय कर्म का भयंकर लाखों गुणा अधिक होता है / अतः बंध होता है। इस प्रकार परमात्मा विवेक- बुद्धि को जगाकर आलू की आज्ञानुसार कंदमूलादि का आदि कंदमूलों का निषेध करना सर्वथा वर्जन करके स्वादवृत्ति एवं चाहिये।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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