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________________ ‘रात्रि भोजन : दुर्गति का कारण प्र.517.रात्रि भोजन क्यों नहीं करना चाहिये? उ. (i) रात्रि भोजन करने से जिनाज्ञा की अवहेलना होती है। (ii) सूर्यास्त होने के बाद असंख्य सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति होने से जीव-हिंसा का महापाप लगता है। (iii)रात्रि भोजन करने वाले परभव में रात्रिभोजी पशु बनते हैं जैसे-सर्प, बिल्ली, उल्लू, कौआ, सुअर आदि। (iv)इससे नरक एवं तिर्यंच गति में जाना पड़ता है। (V)रात्रि भोजन करने वाला प्रतिक्रमण आदि आवश्यक धर्मप्रवृत्तियों से वंचित एवं विमुख हो जाता है। (vi)बर्तनों में भी जीवोत्पत्ति होती है। कदाच् बर्तन बासी रखे जाने से ' उनका भी पाप लगता है। प्र.518. रात्रि भोजन के त्याग में क्या कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है ? उ.. हाँ! सूर्य की किरणों का अपना अलग महत्त्व है। ये हमें अनेकानेक रोगों से बचाती हैं। वर्तमान में सूर्य स्नान (Sun-bath) की पद्धति भी प्रचलित है। इसी प्रकार भोजन में भी इनका अपना उपयोग है। (i) हमारे शरीर में दो कमल हैंहृदय एवं नाभि / सूर्य के अस्त होने पर ये संकुचित हो जाते हैं अतः रात्रि भोजन निषिद्ध है। पाचन क्रिया में प्राण वायु (Oxyzen) का अत्यन्त महत्त्व है। रात्रि में सूर्य-प्रकाश का अभाव होने से पाचन प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है, फलतः व्यक्ति बीमार हो जाता है। (ii)भोजन करने के दो-तीन घंटे के बाद शयन किया जाना चाहिये। यह स्वास्थ्यवेत्ताओं का कथन है। रात्रिभोजी यदि जल्दी सोयेंगे तो जल की कमी से स्वास्थ्य खतरे में पड़ जायेगा और देरी से सोयेंगे तो उठना देरी से होगा। परिणामतः बुद्धि, मन और स्वास्थ्य विकृत होंगे और दैनिक चर्या में अनियमितता आएगी। (ii)सूर्य किरणों की कीटाणु प्रति रोधक क्षमता भोजन को शुद्ध एवं
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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