________________ अंजीर आदि में बीजों के मध्य पड नहीं होने से एक दूसरे के घात के कारण बनते हैं। प्र.516. महाराजश्री ! आप कहते हैं कि जिसमें फेकने का अंश अधिक व खाने का कम होता है, वह फल त्याज्य है परन्तु हम देखते हैं कि इक्षु खण्ड में फेकने योग्य अधिक व उपयोगी पदार्थ कम होता है पर उसका त्याग नहीं किया जाता है एवं पूजन - महापूजन एवं फल पूजा में सीताफल का प्रयोग होता है,यह सब उचित है या अनुचित? उ. जिसमें खाने का कम हो व फेकने का अधिक हो, वह तुच्छ फल है तो जिसे खाने से तृप्ति-शक्ति न मिले एवं स्वाद-लोलुपता को बढ़ावा मिले, वह भी तुच्छ फल ही है। यह सर्वविदित है कि परमात्मा आदिनाथ के चार सौ दिन के तप का पारणा इक्षु रस से हुआ था। यद्यपि इक्षु खण्ड में फेकने का अंश अधिक होता है तथापि अत्यन्त गुणकारी, उपकारी, शक्तिवर्धक एवं तृप्तिदायक होने से इक्षु रस को त्याज्य नहीं कहा गया। आपने दूसरा प्रश्न उठाया कि प्रभु की फल-पूजा एवं महापूजनों में सीताफल का प्रयोग किया जाता है फिर वह अभक्ष्य कैसे हो सकता है ? वास्तविकता तो यह है कि पूजा में सीताफल, चैत्र से आषाढ़ माह तक काजू आदि सूखा मेवा चढ़ाना शास्त्र-विरुद्ध है। अति की कल्पना में व्यक्ति अविधि का * आचरण कर बैठता है। ध्यान रखना, धर्म पदार्थों को चढ़ाने में कम और विधि एवं विवेक में ज्यादा है।