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________________ शुभ विचारों को नष्ट करने वाले इस प्रकार के मनोरंजन के साधनों से भी बचना चाहिये। प्र.507.आजकल शाकाहारी अण्डे का जोरशोर से प्रचार हो रहा है तो उसका प्रयोग करना उचित है अथवा अनुचित? अंडा किसी पेड़ पर तो लगता नहीं कि उसे शाकाहारी कहा जाये। यह तो भारत की आर्य संस्कृति को खोखली बनाने का षडयंत्र है। अण्डा जन्म से पूर्व जीव की दशा है और उसका भक्षण स्पष्ट रूप से मांसाहार ही है। यह दुर्गति, अधर्म का कारण होने के साथं स्वास्थ्य का भी परम शत्रु है। इसके कारण टी.बी., केंसर आदि रोग हो जाते हैं अतः समझदारी इसी में हैं कि मरते दम तक किसी भी रूप में इसका उपयोग नहीं किया जाये। प्र.508.आजकल युवावर्ग में बीडी, सिगरेट, गुटखे को स्टेण्डर्ड का प्रतीक माना जा रहा है तो क्या उसका प्रयोग हानिकारक नहीं हैं? उ. दिल से दिमाग तक, सिर से पाँव तक और आंत से दांत तक की विकृति और बीमारी के बीज रुप ये व्यसन शुरु में अच्छे लगते हैं पर बाद में जीवन की सबसे बड़ी समस्या बन जाते है। ये व्यसन तन, मन और धन की बरबादी के प्रमुखतम कारण हैं। केंसर, हृदयरोग, सिरदर्द, बी.पी. के जिम्मेदार इन व्यसनों के कारण प्रतिवर्ष हजारों व्यक्ति मृत्यु के मुँह में चले जाते हैं। तंबाकू के कारण विश्व में प्रतिदिन ग्यारह हजार व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त होते हैं। बीडी, सिगरेट में निकोटिन जैसे विषैले पदार्थों से धमनियों, आंतों, श्वसन नली में सूजन आ जाती है। मिराज, पानपराग, माणिकचंद आदि गुटखों के कारण मुंह, आंतों की कोमल त्वचा जलकर नष्ट हो जाती है। दांतों का पीलापन, गुर्दे और गले में गांठें, यकृत व हृदय की बीमारी, ये सब गुटखा चबाने के ही घातक परिणाम हैं। 400 प्रकार के केमिकल्स से युक्त गुटखों से शरीर में विटामिन डी की कमी होने से लौह तत्त्व कम हो जाता हैं। यह जानकर जागरूक युवा को फैशन के मायाजाल में न फंसकर व्यसनों का त्याग करना चाहिए।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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