________________ 2. कदाच्- चोरी करते पकड़े जाने अल्पभवों में मोक्ष सुख का उपभोक्ता , पर स्वामी/ राजा का दण्ड बनता है। भुगतना पड़ता है और काराग्रह, ध्यान रहे, चोरी करने व करवाने देशनिकाला/फांसी पर्यन्त वाला, चोर के साथ मंत्रणा करने सजा मिलती है। वाला, चोरी का भेद जानने 3. कुल का अपयश, समाज में वाला, चोरी की वस्तु लेने वाला, अविश्वसनीयता और स्वयं की चोर को भोजन एवं आश्रय देने निंदा होने से क्रोधादि कषायों वाला भी चोर ही कहलाता है। को खुला आमन्त्रण मिलता है, सुज्ञजनों को जरूरी है कि और जीव क्रमशः दुर्गतिगामी प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप चोर होता है। बनकर अधोगति के शिकार न 4. चौर्य कर्म से जीव इस भव में बने। कपिल केवली व आर्द्र दरिद्रता, * अंगोपांग छेदन, कुमार के सदुपदेश से पांचदौर्भाग्य, दासत्व जैसे भयंकर पांच सौ चोर दीक्षित हुए। इसी दोषों का स्थान बनता. हैं और प्रकार जम्बू कुमार का उपदेश परलोक में अंधा, बहरा, लूला, सुनकर प्रभव एवं उनके पांच सौ मच्छीमार बनता है और चोर दीक्षित हुए और मोक्षधाम लाखों - करोड़ों भवों तक के सन्निकट पहुंचे। दुःखों को भोगता है। प्र.506. वेश्यागमन, परस्त्रीगमन एवं इस व्रत की प्रशंसा करते हुए शिकार को घृणित क्यों बताया महर्षि कहते हैं - अचौर्यव्रत गया है? . धारक का न्यायोपार्जित धन उ. 1. वेश्यागमन - यह दोषों का घर- बाहर, खेत-खलिहान, सरदार है। इसकी छाया तो दृष्टि जंगल- पर्वत आदि में चोर, विष सर्प से भी करोड़ों गुणा शस्त्रादि किसी भी प्रकार से भयंकर है। इस महादोष का नष्ट नहीं होता है तथा वह व्रती त्यागकर नंदीषेण मुनि, स्थूलिभद्र क्रमशः सर्वत्र विश्वास, प्रशंसा, आदि मोक्ष मार्ग के यात्री बने। यश, सुख, निर्भयता, स्वर्गीय यह तो सर्वदिशाओं से ईंधन को ऐश्वर्य प्राप्त करता हुआ खाने वाली महाग्नि के समान है, * ********** * 193 ** **