________________ महाशतक श्रावक की पत्नी रेवती वैसे अल्पकालिक तृप्ति होती जाती सातवीं नरक में गयी। केवल है परन्तु जुए की निंद्य, त्याज्य कौएँ के मांस का त्याग करके भी प्रवृत्ति में जीतने से लगातार लोभ वंकचूल देवलोकगामी बना। बढ़ता जाता है और पराजित होने प्र.503. मदिरा नुकसानदायक क्यों है? पर 'अगले दांव में जीतूंगा।' ऐसी उ. मदिरा पान से व्यक्ति की मति आशा में व्यक्ति सब कुछ हार कर बिगड़ जाती है। उसे अच्छे-बुरे का फूटपाथ पर आ जाता है। भान नहीं रहता है। मदिरा में जुआ तो एक ऐसी दुष्प्रवृत्ति है असंख्य त्रस व स्थावर जीवों की जिसके कारण पाण्डवों जैसे उत्पत्ति होने से जीव हिंसा का बुद्धिमंत एवं प्रज्ञाशील महापुरुषों ने महापाप लगता है एवं व्यक्ति का दुर्मतिवश द्रौपदी तक को दांव पर अपयश होता है। लगाया और अन्त में सब कुछ द्वारिका नगरी का विनाश मदिरा हारकर बारह वर्षों तक भिखारी की पान के कारण ही हुआ था। यह भांति घर-घर एवं नगर-नगर दुर्गति में ले जाने वाला आत्मा का भटकते रहे। अतः इहलोक में निंद्य, परमशत्रु है। प्रारंभ में यह भले ही अपयशदायक एवं सुख-साधनों अच्छा लगे, अंततः व्यक्ति को दुःख को नष्ट करने वाले तथा परलोक और पतन के गर्त में गिरा देता है। में नरकादि दुर्गतियों में गिराने वाले किसी ने बहुत ठीक कहा है - त्रिकाल निंद्य द्यूतक्रीडा (जुआ) आज तक जितने लोग पानी में रूपी महाव्यसन का अवश्य त्याग डूबकर नहीं मरे हैं, उससे अनेक करना चाहिये। गुणा लोग शराब की प्याली में दादा जिनदत्तसूरि, जिनकुशलसूरि, डूबकर मरे हैं। प्रारम्भ में व्यक्ति आदि के सदुपदेश से लाखों परिवारों शराब को पीता है, बाद में शराब ने सप्त व्यसनों का सर्वथा त्याग आदमी को पी जाती है। कर सुन्दर जीवन अपनाया और प्र.504. जुआ त्याज्य क्यों कहा गया? सुख-शान्ति के साधन प्राप्त किये। उ. एक अपेक्षा से जुआ मदिरापान से प्र.505. चोरी का त्याग क्यों करें? अधिक खतरनाक है। जैसे-जैसे उ. 1. चोरी करने से जिनाज्ञा की व्यक्ति मदिरापान करता है, वैसे- अवज्ञा होती है।