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________________ अभक्ष्य का भक्षण : बढे जन्म-मरण प्र.500. अभक्ष्य किसे कहते है? का फल, 8. गूलर का फल, 9. बड का फल, उ. जो खाने/भक्षण करने योग्य न हो, उसे 10. बर्फ, 11. जहर, 12. ओले, 13. कच्ची अभक्ष्य कहते है। इसके बाईस प्रकार कहे गये मिट्टी, 14. बैंगन, 15. बहुबीज, 16. आचार, ___ 17. द्विदल, 18. तुच्छफल, 19. अज्ञात फल, 1. मांस, 2. शहद, 3. मक्खन, 4. मदिरा, 5. 20. रात्रि भोजन, 21. चलित रस, 22. उंबर का फल, 6. कलुबर का फल, 7. पीपल अनन्तकाय / सप्त व्यसन : नरक का द्वार प्र.501.सप्त व्यसन कौनसे हैं? उ.- 1. मांस, 2. मदिरा, 3. जुआं 4. चोरी, 5. वेश्यागमन, 6. परस्त्रीगमन, 7. शिकार / इसके अतिरिक्त गुटखा, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू भी व्यसनों का ही रूप है। प्र.502. मांस त्याज्य क्यों हैं? उ. मरे हुए जीव के मांस में तत्काल उसी रंग के अनंत जीव एवं दृष्टिगोचर न होने वाले त्रस जीव उत्पन्न हो जाते है अतः मांस सर्वथा त्याज्य है। मनुस्मृति में लिखा है कि जीवों को मारने की अनुमति देने वाला, काटने वाला, खरीदने वाला, पकाने परोसने एवं खाने वाला, ये सभी पापी और घातक हैं। जो मांस भक्षण करता है, वह नरकगामी होता है। इस भव में एवं परभव में दरिद्र, रोगी, अपाहिज, कुष्ठ रोगी, दुर्भागी एवं दुःखी होता है। स्वास्थ्य की अपेक्षा से भी मांस अत्यन्त हानिकारक है। मनुष्य के शरीर की प्रकृति शाहाकार के अनुकूल है। मांसाहार से व्यक्ति हिंसक, क्रोधी, कलही बनता है। केंसर, टी.बी., ब्लडप्रेशर, हृदयाघात, पथरी रोग हो जाते हैं। इस प्रकार आत्मा, मन, वातावरण और परभव, इन सभी दृष्टियों से मांसाहार सर्वथा त्याज्य है। मांसाहार के कारण
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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