________________ होती है। अन्यथा अभक्ष्य, मछली का रस, अण्डे आदि पदार्थों वाली दवाईयाँ लेनी पड़ती हैं। अधिक मात्रा में भोजन करने वालों के लिये किसी ने बहुत खूब कहा है-तुम एक तिहाई स्वयं के लिये और दो तिहाई डॉक्टर के लिये खाते हो। स्वास्थ्य लाभ हेतु चिन्तनीयकरणीय बिंदु(1)पन्द्रह दिनों में एक उपवास अथवा दो आयंबिल करें। इससे मन निर्मल रहता है, विकार शान्त हो जाते हैं तथा काया निरोगी रहती है। (2)तप के पूर्व एवं पश्चात् दिनों में गरिष्ठ, नमकीन आहार न ले एवं अत्यधिक मात्रा में आहार न करें। जिस प्रकार मशीन को बीच-बीच में आराम दिया जाता है, वैसे ही पाचन तन्त्र को भी आराम देना चाहिये। (3)हर समय पशु की भाँति मुँह नहीं चलाना चाहिये अन्यथा काया पर रोग, मोटापा, डाइबीटिज आदि की काली छाया मण्डराने लगती है। शारीरिक दीप्ति, तेजस्विता और सौन्दर्य अल्पकाल में समाप्तप्रायः हो जाते हैं। (4)भूख लगने पर खाने से भोजन अमृत रूप बनता है, बिना भूख वह विष समान कहा गया है, इस बात का ध्यान रखे। (5)भोजन को पचाने की मशीन जठराग्नि को अल्प श्रम करना पड़े अतः स्वास्थ्य विज्ञान का सिद्धान्त है कि चबा-चबा कर एवं भूख से थोड़ा कम खाना चाहिये। (6)शोक, भय, तनाव, थकान, क्रोध की स्थिति में आहार करना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है। (7)स्वाद के कारण अति भोजन करना अनुचित है। पौष्टिक, स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन भी उपयुक्त मात्रा में ही लेने का स्वास्थ्य मनीषियों का सिद्धान्त है। (8)अनन्तकाय, अभक्ष्य, बासी, बाजार के पदार्थों का त्याग करें। (9)मांस, मदिरा, शहद, मक्खन, अंडा आदि पदार्थ इन्सान को शैतान बना देते हैं, अतः इनका वर्जन धर्म एवं स्वास्थ्य, दोनों अपेक्षाओं से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। (10) जल-पान अजीर्ण होने पर औषधि का, पच जाने पर स्वस्थता का, भोजन के मध्य अमृत का, भोजन के तुरन्त प्रारम्भ में बलहीनता का एवं भोजन के तुरन्त बाद बीमारी का कारण बनता है।