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________________ वाले धर्मलाभ का ही आशीष देते हैं। प्र.457. गोचरी वोहराने में क्या-क्या सावधानियाँ रखनी चाहिये? उ. पुण्योदय का योग होने पर मुनि भगवंतों के चरणों से घर पवित्र होता है पर कहीं ऐसा न हो कि शुद्ध, प्रासुक आहार तैयार भी हो और वोहराने का लाभ भी न मिले, इस हेतु निम्नोक्त सावधानियाँ रखनी चाहिये(1)साधु के निमित्त आहार तैयार न करें, परन्तु घर में जो स्वयं के लिये बना है, उसे ही अर्पण करें। (2)जिनाज्ञानुसार रात्रि भोजन का त्याग अवश्य करें ताकि शाम को निःस्वार्थ श्रमणवर्ग के आने पर आहार-दान संभव हो सके। (3)यदि गर्म (उबला) हुआ पानी पीना संभव हो तो पीना चाहिये / इससे ___ एक तरफ जिनाज्ञा का पालन होगा, दूसरी तरफ साधु-संतों को शुद्ध जल प्राप्त होगा, तीसरा लाभ यह है कि स्वास्थ्य स्वस्थ रहेगा। (4)फाल्गुन चौमासे के अलावा पत्ते की सब्जी, गोभी, धनिया एवं सूखे मेवे आदि का उपयोग करेंगे तो मुनियों के ये त्याज्य होने से आप सुपात्र दान के दिव्य लाभ से वंचित हो सकते हैं, अतः इसमें भी विवेक रखने की आवश्यकता है। " (5)नित्य उपयोगी यथा खाखरा आदि के पात्र, जहाँ सचित्त का स्पर्श न हो, वहाँ रखने चाहिये। (6)दूध, दही, आम रस, छाछ आदि सामग्री फ्रीज में न रखे, अन्यथा आप वोहराने का लाभ प्राप्त नहीं कर पायेंगे। (7)उल्लास और श्रद्धा से वोहरावे पर अत्यधिक आग्रह करके नवोहरावें / (8)वोहराते समय हाथ चिकने हो जाये अथवा पदार्थ से लिप्त हो जाये तो कच्चे पानी से, बेसिन में न धोकर रसोईघर के कपडे से पौंछ लेने चाहिये अन्यथा साधु एवं श्रावक, दोनों को दोष लगता है। (9)मुनिराज के आने पर सचित्त वस्तु से संघट्टा वाले व्यक्ति अन्य से दूर रहे अन्यथा वे भी वोहराने के लाभ से वंचित हो जायेंगे। (10) वोहराते समय अद्रव-ठोस (Solid) पदार्थ पहले एवं द्रवशील पदार्थ अन्त में वोहराये। (11) संयमी साधुओं की यह समाचारी है कि वे एक गृहस्थ के घर से अतिमात्रा में आहार स्वीकार नहीं ____करते हैं क्योंकि बाद में पुनः आरम्भ-समारम्भ की संभावना
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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