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________________ समय चीज नीचे न गिरे, पात्र चाहिये तथा दवारूप सोंठ, उससे लिप्त न हो, इस बात का अजवायन आदि, वस्त्र, लेखनपूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिये। सामग्री आदि की भी विनंती (7)चप्पल, जूते पहनकर वोहराना करनी चाहिये। अविधि एवं आशातना है (12) छोटे, बड़े, पदस्थ, अपदस्थ एवं (8) ढक्कन हटाकर एक-एक वस्तु गच्छ-सम्प्रदाय का भेद किये की विनती करें कि 'लीजिये, लाभ बिना यथाशक्ति, हर्षोल्लास एवं दीजिये। श्रद्धा में क्रमशः वृद्धि करते हुए (9)घर का मुख्य द्वार ऑटोमेटिक बंद निःस्वार्थ भाव से वोहराना होने वाला नहीं होना चाहिये। यदि चाहिये। कुत्ते आदि के कारण जाली वाला (13) जब गुरुवर वोहरकर प्रत्यावर्तित द्वार लगाना अनिवार्य हो तो वह हो, तब दरवाजे तक पहुँचाने द्वार ऐसा हो कि बाहर से भी खुल जाना चाहिये तथा 'पुनः लाभ सके। ऐसे द्वार को खोलकर दीजियेगा।' यह प्रार्थना करनी मुनिवर कल्पनीय/प्रासुक आहार * चाहिये। गवेषणार्थ आसानी से अन्दर (14) कदाच गोचरी के लिये घर बताने प्रविष्ट हो सकते हैं। के लिये जाना पड़े तो सेवक, यदि स्थिति अनुकूल हो तो गोचरी नौकर को न भेजकर श्रावक को के समय घर के द्वार खुले रखे, स्वयं जाना चाहिये। इन्तजार करें क्योंकि साधु घंटी प्र.456. मुनि भगवंत आयुष्यमान् भव, बजा नहीं सकते। कई बार द्वार से पुत्रवान् भव, धनवान् भव आदि न वापस लौट जाते हैं और आप बोलकर 'धर्मलाभ' का ही सुपात्र दान के महान् लाभ से आशीर्वाद क्यों देते हैं? वंचित रह जाते हैं। उ. आयु न घट सकती है, न बढ़ सकती (10) यह ध्यान देने योग्य है कि है, अतः आयुष्यमान् भव नहीं कहते। गृह-द्वार बंद होने पर मुनि के पुत्र, परिवार, सत्ता, सौन्दर्य अन्ततः साथ आया श्रावक घंटी न बजाये। दुःख के कारण है, अत: मुनिवर (11) सारी वस्तुऐं याद करके वोहरानी भवसागर में नौका के समान तिराने
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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