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________________ (8) यदि आप आगे के पंक्ति में बैठकर है। वक्ता आनंद, उत्साह, चिन्तन से प्रवचन-श्रवण करना चाहते हैं तो भर जाये, इस प्रकार सुने। समय पर प्रवचन-सभा में ___(12) प्रवचन को किसी फिल्मी गीत की उपस्थित होना चाहिये। पीछे से तरह चंचलता से नहीं, अपितु आकर आगे बैठना प्रवचन सभा गंभीरतापूर्वक रोम-रोम से मंत्र और की मर्यादा व अनुशासना को भंग सूत्र की तरह सुने। करना है। (13) सुने हुए पर मनन अवश्य करें एवं (9) प्रवचन सुनते समय त्रिदिशि आचरण में उतारने का पुरुषार्थ करें त्याग का पालन का करे यानि क्योंकि वक्ता से चिन्तक ज्यादा हैं, प्रवचन की पूर्णता पर्यन्त मुख, चिन्तक से श्रोता ज्यादा हैं पर नयन और मन केवल और केवल आचारज्ञ तो अल्प ही होते हैं। गुरु भगवंत की ओर होने चाहिये। (14) प्रवचन का एक शब्द भी आपको (10) प्रवचन निद्रा की मुद्रा में न सुने। बदलने की शक्ति रखता है जैसा कि क्योंकि श्रोता की, श्रवण मुद्रा रोहिणेय चोर ने एक बार अश्रद्धा से प्रवचन मण्डप, वक्ता और अन्य सुना पर जीवन बदल गया। श्रोताओं को प्रभावित करती है। (15) प्रवचन के पूर्ण होने पर वंदन जिस प्रकार संसार में कोई अवश्य करें। आश्चर्यजनक बात सुनकर हम प्र.449.शास्त्रों में कितने प्रकार के श्रोता तत्काल आश्चर्य से भर जाते हैं, कहे गये हैं ? वैसे ही अभुतपूर्व तत्त्व को सुनकर उ. चार प्रकार के - आश्चर्य होना ही चाहिये। (1) हँस की तरह अच्छी बातें ग्रहण करने (11) प्रवचन में नींद न ले। वाले। सकारात्मक और जिज्ञासु मुख (2) सर्प की तरह जिसके लिये दूध भी मुद्रा में प्रवचन श्रवण करें क्योंकि जहर बन जाता है। आपकी मनः स्थति, चेहरे के (3) छिद्रयुक्त घट की तरह जिसे सुनने पर हाव-भाव, आँखें, मुस्कान और भी कुछ भी याद नहीं रहता। बैठने की स्टाइल वक्ता को (4) छलनी जैसे श्रोता जो वक्ता व प्रवचन प्रोत्साहित एवं निरुत्साहित करती में दोषों को ही खोजते हैं। शास्त्रों में
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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