________________ कैसे सुने प्रवचन....? उ. प्र.447.प्रवचन श्र उत्तराध्ययन सूत्र में परमात्मा फरमाते हैं कि तत्त्व-श्रवण से जड़-चेतन का भेद विज्ञान प्राप्त होता है, उससे आश्रव द्वारों को अवरूद्ध किया जाता है और क्रमशः संवर एवं निर्जरा के माध्यम से जीव मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। एक बार प्रवचन सुनकर अतिमुक्तक वैरागी बना और वीतरागता तक पहुँचा। मात्र एक बार अश्रद्धापूर्वक सुने हुए श्लोक ने राहिणेय चोर को अभयकुमार के चंगुल में फंसने से बचा लिया। जिनवाणी का माहात्म्य अपूर्व है। श्रद्धापूर्वक श्रवण कर जो आचरण में उतारता है, वह पुण्यानुबंधी पुण्य का संचय करके प्रत्येक भव में जिनशासन को प्राप्त हुआ मोक्षगामी बनता है। प्र.448. प्रवचन श्रवण किस प्रकार करना चाहिये? उ. (1)जिनशासन के अनुशासन को आत्मसात् करते हुए गुरु महाराज के आने से पूर्व ही प्रवचन**** *** ** *_ 160 मण्डप में उपस्थित होना चाहिये। (2)तत्पश्चात् गुरु महाराज को वन्दन करके वायणा (वाचना) के आदेश ग्रहण करें। (3)सामायिकपूर्वक प्रवचन–श्रवण से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं- जैसे जिनाज्ञा का पालन, संवर की साधना, एकाग्रता में वृद्धि, विरति धर्म की प्राप्ति इत्यादि। (4)झुठे मुँह प्रवेश न करें। मोबाइल बन्द रखे, जिससे एकाग्रता में विघ्न उत्पन्न न हो। (5)प्रवचन सुनने समय पंखे का उपयोग न करें। विरति धर्मश्रवण करते हुए थोडी देर अवश्यमेव शरीर की सुविधा का त्याग करें ताकि पूरा लाभ प्राप्त हो। (6)प्रवचन सभा के मध्य में न वार्तालाप करें, न बीच में से उठे। अत्यन्त आवश्यक कार्य हो तो बात अलग है। (7)प्रवचन के मुख्य बिन्दु यदि डायरी में अंकित किये जाये तो पुनः पुनः स्वाध्याय का लाभ प्राप्त हो सकता है। ***** * --*-*