________________ (4)अंजलिबद्ध प्रणाम -ध्वजा एवं प्र.405.प्रदक्षिणा त्रिक किसे कहते है? प्रभु दर्शन होते ही झुककर नमो उ. सम्यज्ञान - दर्शन - चारित्र रूप जिणाणं कहना। रत्नत्रयी की प्राप्ति के लिये परमात्मा (5)प्राणिधान-एकाग्रता एवं विनय की तीन प्रदक्षिणा देना प्रदक्षिणा त्रिक से पूजन-अर्चन-स्तवन करना। कहलाता है। प्र.403. मंदिर से संबंधित दस त्रिक कौन प्र.406.प्रणाम त्रिक से क्या अभिप्राय है? कौनसी हैं? उ. प्रणाम तीन प्रकार के होते हैं - उ. तीन-तीन की बातों के समूह को 1. अंजलिबद्ध- दोनों हाथ जोडकर, त्रिक कहा जाता है, ऐसी बातें दस सिर झुका कर नमो जिणाणं कहना। होने से त्रिक दस प्रकार की कही 2. अर्धावनत- आधा शरीर झुकाकर गयी हैं प्रणाम करना। 1. निसीहि 2. प्रदक्षिणा 3. प्रणाम 3. पंचाग प्रणिपात- खमासमणा देते 4. पूजा 5 अवस्था 6. दिशा 7. प्रमार्जना समय दोनों हाथों, दोनों घुटनों और 8. आलम्बन 9. मुद्रा 10. प्रणिधान। मस्तक को भूमि से स्पर्श कराते हुए प्र.404.निसीहि त्रिक किसे कहते हैं? प्रणाम करना। उ. निसीहि अर्थात् निषेध करना, त्याग प्र.407.तीन प्रकार की पूजा कौनसी हैं? करना। उ. अंगपूजा, अग्रपूजा एवं भावपूजा।। 1. जिनमंदिर में प्रवेश करते समय प्र.408.अंगपूजा और अग्रपूजा में क्या सांसारिक कार्यों के त्याग रूप अन्तर है? - प्रथम निसीहि बोलनी चाहिये। उ. अंगपूजा में प्रभु–प्रतिमा का स्पर्श 2. मंदिर संबंधी व्यवस्थाओं का किया जाता है परन्तु अग्रपूजा में अवलोकन करने के पश्चात् प्रभु प्रतिमा का स्पर्श न करके उनके पूजा हेतु मूल गंभारे में प्रवेश करते सम्मुख पूजा की जाती है। समय दूसरी निसीहि बोलनी प्र.409. परमात्मा के किन नव अंगों की चाहिये। पूजा की जाती है? 3. प्रभुपूजा करने के बाद भावपूजा उ. 1. अंगूठा 2. घुटना 3. हाथ 4. कंधा (चैत्यवंदन) करने से पूर्व तीसरी 5. मस्तक 6. ललाट 7. कंठ 8. हृदय निसीहि बोलनी चाहिये। 9. नाभि।