SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन-दर्शन एवं पूजन विधि प्र.399.जिनपूजा हेतु स्नान किस प्रकार है। जैसे ही घण्ट का घोष व्यक्ति करनी चाहिए? के कानों से टकराता है, व्यक्ति को उ. श्रावक को परात में बैठकर सीमित स्मरण हो आता है कि 'मैं मंदिर में जल से पश्चिम दिशामुखी स्नान आ गया हूँ। मुझे संसार से संबंधित करनी चाहिये और वह पानी निरवद्य विचार नहीं करने हैं।' (जीवरहित) भूमि पर परठना चाहिये। 2. अन्तर का आनंद अभिव्यक्त प्र.400.जिनपूजा हेतु प्रारंभिक जानकारी करने के लिये बाहर निकलते दीजिये। समय घण्टनाद किया जाता है, उ. 1. जिनपूजा में बिना सिले एवं बिना पर घण्टनाद सामान्य ध्वनिपूर्वक कटे फटे तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिये। करना चाहिये। प्र.402. जिन मन्दिर में प्रविष्ट होते समय 2. जिनपूजा हेतु नग्न पाँव जाना कौनसे पाँच अभिगमों का पालन चाहिये। . करना होता है? 3. घर से लगाकर मंदिर पर्यंत मौन उ. (1)सचित्त का त्याग - गले में रखना चाहिये एवं जयणा पूर्वक स्थित पुष्पमाला एवं केश-वेणी चलना चाहिये। का त्याग करके मंदिर जाना ।खाने 4. ध्वजा के दर्शन होने पर 'नमो - पीने की वस्तु यथादवा, मुखवास जिणाणं' कहना चाहिये। आदि लेकर मंदिर में प्रवेश नहीं 5. मंदिर में पुरूष वर्ग को परमात्मा करना। के दायीं तरफ तथा स्त्री वर्ग को (2)अचित्त का अत्याग - यदि शरीर बायीं तरफ खड़ा रहना चाहिये। पर आभूषण हो तो उनका त्याग प्र.401.जिनमंदिर में प्रवेश करते और नहीं करना। बाहर निकलते घण्टनाद क्यों (3)उत्तरासन - पुरुषों को मंदिर में किया जाता है? स्कंध को एवं स्त्रियों को सिर उ. 1. घण्टनाद व्यक्ति को जगाने में हेतु ढककर मंदिर में प्रवेश करना। ******* * ** 148 * *******
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy