________________ संबोधि के सोपान उ. प्र.386. आत्मबोध का प्रथम सोपान निर्जीव में ये सब असंभव है। कौनसा है? 4. जीव को ही सुख-दुःख की जिस प्रकार घर और उसका मालिक, अनुभूति होती है, अजीव को लिफाफा और उसमें रखे रुपये, कपड़े कभी नहीं। और उसे धारण करने वाला अलग 5. व्यवहार में शरीर को 'मैं कभी अलग हैं, उसी प्रकार आत्मा और नहीं कहा जाता है, उसके लिये शरीर, दोनों भिन्न-भिन्न है। इस 'मेरा' शब्द ही चलता है, इससे प्रकार का चिन्तन ही आत्मबोध का स्पष्ट है कि 'मैं का अर्थ आत्मा प्रथम सूत्र है। ही है। मेरा सिर दुखता है, ऐसा प्र.387.आत्मा और शरीर को भिन्न किस कहा जाता है, न कि 'मैं दुखता प्रकार कहा जा सकता है जबकि आत्मा प्रत्यक्ष नहीं है ? 6. शरीर में रक्त मुख्य धातु है उ. 1. शरीर से जब आत्मा अलग हो जिसके बिना जीव जी नहीं जाती है तब यह शरीर काष्ठ की सकता। विज्ञान ने चकित भांति निश्चेष्ट पड़ा रहता है। करने वाली प्रगति है तथापि उसकी सारी क्रियाएँ समाप्त हो वह ऐसी मशीन का निर्माण जाती हैं। नहीं कर सका जो रक्तादि का 2. शरीर में यों तो दुर्गंध नहीं आती निर्माण कर सके। इसका अर्थ है परन्तु मृत्यु के कुछ समय बाद यही है कि रक्त जीवित प्राणी ही उसमें सड़ांध उत्पन्न हो जाती में ही बनता है। है, उसका विसर्जन अनिवार्य हो प्र.388. वैर को कैसे उपशांत किया जा जाता है। सकता है? 3. चेतना सहित शरीर में ही उ. वैर को प्रेम से ही जीता जा सकता है। देखना, चलना, श्वासोच्छ्वास वैर हमेशा वैर का ही अनुबंध करवाता आदि प्रवृत्तियाँ हो सकती हैं। है। क्षमाभाव जितना प्रबल होगा, वैर