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________________ कार "प्र.384. लेश्या-विज्ञान पर यदि शास्त्रों में प्रथम तीन अशुभ, अधर्म लेश्या तथा कोई दृष्टान्त हो तो वह भी बताईये। शेष तीन को शुद्ध, धर्मलेश्या कहा उ. उपदेश प्रसाद में एक उदाहरण प्राप्त गया है। होता है, वह भावधारा की भिन्नता को प्र.385. लेश्या-स्नान किसे कहते है? अभिव्यक्त करता है उ. कई बार देखा जाता है कि किसी छह व्यक्ति हैं। उन्हें जंगल से गुजरते व्यक्ति के स्नान करने व इत्र, गंध समय भूख लगी। उन्होंने जामुन का आदि लगाने के कुछ पलों के बाद ही वृक्ष देखा तब उसके शरीर से दुर्गंध आने लगती है, (1)एक ने कहा- इस वृक्ष को और कोई व्यक्ति स्नान, वस्त्रकाटकर जामुन खाये जाये / प्रक्षालन आदि नहीं करता है, फिर (2)दूसरे ने कहा- इसकी एक भी उनके शरीर से दुर्गंध नहीं आती विशाल शाखा को तोड़कर उदरपूर्ति है। की जाये। कई बार योगियों के शरीर से चन्दन (3)तीसरे ने कहा- छोटी शाखाओं से आदि की सुगंध भी आती है, इसमें ही अपना काम बन जायेगा। मुख्य कारण लेश्या विशुद्धि है। यह (4)चौथे ने कहा-पूरी शाखा क्यों जीव के निर्मल एवं स्वच्छ अन्तःकरण तोड़े, गुच्छे ही तोड़े जाये। का द्योतक है। अतः अधिकतम आराधना, साधना, जप-तप, ज्ञान(5)पाँचवां बोला- उसमें भी पक्व ध्यान करो, मन को मैत्री, प्रेम, स्नेह, ‘जामुन ही तोड़े जाये। करूणा के सुगंधित पुष्पों से महकाते (6)छठे ने कहा- भैया! जामुन रहो। जैसे-जैसे वीतरागता, समता, तोड़ने की क्या जरूरत, जो पके संतोष की त्रिवेणी में नहाते जाओगे, जामुन नीचे गिरे हुए हैं, उनसे ही वैसे-वैसे शरीर, मन, अंग-प्रत्यंग, काम चला लेते हैं। दृष्टि, प्रवृत्ति, भाषा का निर्मलीकरण यह दृष्टान्त भावधारा को अभिव्यक्त होता जाएगा। इससे अभूतपूर्व आनंद करता है। इन्हें क्रमशः कृष्ण, नील, व सुगंध का सोता फूट पड़ेगा। इसे कापोत, तेजो, पद्म और शुक्ल / ही जैन दर्शन में लेश्या-स्नान कहा लेश्या कहा जा सकता है। इनमें से / गया है।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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