________________ रूप-अनन्त जीव कैसे समा सकते प्रशंसा एवं विशेष परिचय-संवाद हैं? बिना बनाये जगत का निर्माण करना / जैसे-अज्ञानी व मिथ्यात्वी कैसे संभव है? इस प्रकार देवों के मेले में जाते श्रद्धालुओं की जिनोक्त तत्त्वों में शंका नहीं करनी प्रशंसा करना। चाहिये। (5)पाँच भूषणकोई बात समझ में नहीं आये तो (1)धर्म से पतित होते जीवों को बुद्धि, चिन्तन करें कि 'जिनश्रुत गहन तर्क-वितर्क अथवा प्रेम पूर्वक एवं विशाल है, यदि मुझे कोई बात जिनधर्म में स्थिर करना। समझ में नहीं आती है तो दोष मेरी (2)जिनशासन की महिमा, प्रभाव हेतु अल्पबुद्धि . का ही है। अतः शोभाकारक त्याग, संयम, साधना प्रभु-प्रवचन में शंका न करके आदि कार्य करना। जिज्ञासु को गुरु भगवंतों से (3)चतुर्विध संघ की निरवद्य भक्ति, समाधान प्राप्त करना चाहिये। सेवा करना। (2)कांक्षा- अन्य मिथ्या धर्म-दर्शनों (4)अज्ञानीजनों को जैन धर्म की का आकर्षक बाह्य रूप-स्वरूप विशिष्टता समझाने में कुशल एवं प्रभाव देखकर उनकी होना। अभिलाषा करना। (5)अरिहन्त प्रभु साधु-साध्वी एवं (3)विचिकित्सा- जिन प्ररूपित गुणीजनों की निरवद्य सेवा विधिमार्ग एवं क्रियानुष्ठान के फल करना। में शंका करना ।जैसे-मैं समस्त प्र.367.लौकिक एवं लोकोत्तर मिथ्यात्व प्रत्यक्ष सांसारिक सुखों का त्याग से क्या अभिप्राय है? कर तप-जप कर रहा हूँ परन्तु उ. 6) राग-द्वेष युक्त एवं मिथ्यात्वी इसका फल मिलेगा अथवा नहीं? देवी-देवताओं का पूजन-अर्चन साधु-साध्वी की मलिन काया, करना तथा चारित्रहीन साधु अथवा वस्त्र को देखकर घृणा करना भी संसारी को गुरु मानना लौकिक विचिकित्सा कहलाती है। मिथ्यात्व है। ___ (4-5)पर पाखंड प्रशंसा एवं आज विभिन्न प्रसंगों पर इस मिथ्यात्व संस्तव- अन्य धर्मावलम्बियों की 129