________________ में निःशंक एवं श्रद्धान्वित होना। एवं करवाता है, उसे कारक सम्यक्त्व (2)संवेग-मोक्ष-प्राप्ति की उत्कट कहते है। तीव्र अभिलाषा होना। (II) जिस सम्यक्त्व में जीव सदाचरण (3)निर्वेद- वैराग्यवासित बनना। में आस्था रखता है परन्तु श्रीकृष्ण, संसार के भोगोपभोगों से उदासीन श्रेणिक सम्राट् की भाँति स्वयं होना। धायमाता की तरह संसार सदाचरण कर नहीं पाता है, उसे का पालन-पोषण करना। रोचक सम्यक्त्व कहते है। (4)अनुकंपा- जीवों पर करूणा (ii) जिस सम्यक्त्व में जीव दीपक दया होना। संयम एवं यतना से तले अन्धेरा' की भाँति उपदेश जीना। देकर दूसरों को सम्यक्त्व की (5)आस्था- जिनवाणी पर दृढ़ श्रद्धा यात्रा से सिद्धपद तक पहुँचा देते का होना। हैं परन्तु स्वयं उसमें रंचमात्र भी प्र.365.सम्यक्त्व के भेद कौन-कौनसे हैं? श्रद्धान्वित नहीं होते हैं, उनका उ. (1) दो भेद- आत्मा में जिन भाषित धर्म दीपक सम्यक्त्व कहलाता है। पर उत्कट प्रीति, श्रद्धा एवं विश्वास . ऐसे जीव अभव्य अथवा निश्चय सम्यक्त्व कहलाता है। - मिथ्यादृष्टि ही होते हैं। व्यवहार में जिनपूजा, सामायिक, प्र.366. सम्यक् दर्शन को शुद्ध, निर्मल एवं प्रतिक्रमण आदि क्रियाएँ करना स्थिर बनाने के लिये क्या-क्या व्यवहार सम्यक्त्व कहलाता है। . करना चाहिये? (2)दो भेद- श्रेणिक की तरह गुरु उ.. शास्त्रों में संम्यक्त्व के कथित पाँच उपदेश व आर्द्रकुमारवत् जिन-प्रतिमा दूषणों का त्याग एवं पाँच भूषणों को के आलम्बन से होने वाला अधिगम ग्रहण करना चाहिये। सम्यक्त्व एवं माता मरुदेवी की तरह (i) पाँच दूषणस्वाभाविक रूप से प्राप्त होने वाला (1)शंका- भगवत् प्ररूपित नव तत्त्वों नैसर्गिक सम्यक्त्व कहलाताहै। में एवं उनके स्वरूप में शंका (3)तीन भेद- (1) जिस सम्यक्त्व में जीव करना / जैसे पानी की एक बूंद में जिनाज्ञानुसार क्रिया में श्रद्धा करता असंख्य जीव एवं सुई के अग्रभाग है, स्वयं सम्यक् अनुष्ठान करता है जितने छोटे से स्थान में निगोद