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________________ का प्रचुर रूप से सेवन हो रहा है। जैनेतर की भाँति जैन भी नवरात्रिव्रत रखते हैं, दशहरा मनाते हैं, शीतला माता की पूजा करके याचना करते हैं एवं बासी खाते हैं। गणगौर त्यौहार में कुंवारी बालाएँ अच्छे पति की याचना करती है, करवा चौथ का व्रत करके सुहाग का सुख मांगती है, दीपावली पर लक्ष्मी-गजानन की पूजा करते हैं, विवाहोत्सव में भवानी, काली, हनुमान आदि देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, दाह संस्कार के बाद फूल (अस्थि) गंगा में बहाये जाते हैं। इसी प्रकार संतोषी माता, हनुमान, शिव आदि के व्रत भी रखते हैं, इस प्रकार का लौकिक क्रिया-प्रपंच व्यक्ति को धीरे-धीरे जिनधर्म से हटाता हुआ मिथ्यात्वी बनाकर भवभ्रमण में डाल देता है अतः जिनेश्वर देव एवं जिनप्ररूपित धर्म में ही विश्वास रखना चाहिये। वर्तमान में 31 दिसम्बर मनाने की नयी रीति चली है। लोग तीर्थ स्थानों पर जाकर नये वर्ष प्रवेश का उत्सव मनाते हैं पर जैनों का नूतन वर्ष प्रवेश कार्तिक शुक्ला एकम से होता है। इसी एकम से नये वीर संवत् का प्रारंभ होता है। नया वीर संवत् मनाना हो तब व्यक्ति के पास न समय का सदभाव होता है, न श्रद्धा की पूंजी पर जैनेतर 31st दिसम्बर पर हम लोग Happy New Year कहते, सुनते और बधाई देते नजर आते है। अपने अहिंसक धर्म को छोड़कर हिंसा आदि से परिपूर्ण अन्य पंथों का अनुकरण करना मिथ्यात्व का पोषण है। अतः Happy New Year कहना हो तो वीर संवत् पर कहिये, न कि इस्वी सन् पर। (ii) लोकोत्तर मिथ्यात्व-संसार के सुख-साधन, सत्ता–सम्पत्ति, संतान के लक्ष्य से सुदेव (अरिहन्त), सुगुरु एवं सुधर्म की आराधना करना। वीतराग परमात्मा के अनुयायी को मोक्ष के अतिरिक्त कोई भी प्रार्थना नहीं करनी चाहिये।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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