________________ इससे विपरीत कार्यों से शुभ नामकर्म का बंध होता है। प्र.352.अशुभ नाम कर्म का क्षय किन उपायों से होता है? उ. 1. निर्मदपूर्वक तप आदि करना। 2. क्षमा, सरलता का आचरण करना। 3. गुणीजनों की प्रशंसा करना। 4. सेवा, स्वाध्याय, ध्यान आदि से आत्मा को पवित्र बनाना। 5. साधार्मिक भक्ति करना। 6. करूणा, दया, संयमपूर्वक जीवन जीना। प्र.353. उच्च गोत्र कर्म बंध के कारण कौन कौनसे हैं? . उ. 1. स्वयं के दोषों की निंदा करना। . 2. दूसरों के गुणों की अनुमोदना करना। 3. कुल/जाति आदि का अभिमान नहीं करना। 4. स्वाध्याय (पठन-पाठन) में रूचि रखना। .. 5. जिनभक्ति, पूजा, सेवा और आराधना करना। इनसे विपरीत आचरण से जीव नीच गोत्र कर्म * का बंध करता है। प्र.354.नीच गोत्र कर्म का क्षय किस प्रकार संभव है? उ. .1. दूसरों के दान, ज्ञान, तप आदि गुणों की प्रशंसा करना। 2. स्वयं के दुर्गुणों की निंदा, आलोचना करना। प्र.355.अन्तराय कर्म का बंध किस प्रकार होता है? उ. 1. अरिहंत और मुनिभगवंत की सेवा, पूजा और सत्कार का निषेध करने से। 2. अठारह पाप-स्थानकों का सेवन करने से। 3. तप, जप, परोपकार आदि का निषेध करने से। 4. साधु-साध्वी आदि को आहार, वस्त्र, स्थान, औषधि आदि देने का निषेध करने से अथवा उसमें अन्तराय उत्पन्न करने से। 5. किसी के धन, ज्ञान, तप, भोजन आदि में अन्तराय करने से। प्र.356.अन्तराय कर्म का क्षय किस प्रकार हो सकता है? उ. 1. सुपात्र दान करना / 2. किसी धर्म आदि कार्य में विघ्न उत्पन्न न करना / 3. ज्ञान, धन आदि के द्वारा सहायता करना। 4. परोपकार के कार्य करना / 5. दीन, दुःखी की सेवा करना / 6. दानी की प्रशंसा करना / 7. तपस्वी, ज्ञानी, परोपकारी, संयमी, ___साधक की प्रशंसा करना / 8. शक्ति के अनुसार जप, तप आदि आराधना करना।