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________________ 3. संतोषवृत्ति धारण करना। आदि। 4. अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, त्याग, तप, 4. नरक आयुष्य बंध के कारण - अपरिग्रह आदि नियम धारण पंचेन्द्रिय जीव का घात करना, करना। मांसाहार करना, महारंभ व 5. त्यागीजनों की प्रशंसा करना। समारंभ करना-करवाना, व्यसनों 6. त्याग, संयम, साधना आदि की का सेवन करना, परिग्रह में प्रभावना करना। अत्यधिक आसक्त होना, रौद्र 7. सुख में आसक्त एवं दुःख में खिन्न परिणाम करना, गर्भपात करना। नहीं होना। प्र.350.आयुष्य कर्म का क्षय किस प्रकार 8. विपत्तिकाल में धैर्य धारण करना, होता है? समता से कष्टों को सहन करना। उ. आयुष्य कर्म का क्षयं भोगने से ही प्र.349.आयुष्य कर्म बंध के कारण होता है। एक बार आयुष्य बांधने के बताओ। बाद उसे भोगना ही होता है, चाहे वह उ. 1. देवायुबंध के कारण - व्रत-महाव्रत तीर्थंकर हो या चक्रवर्ती या राजा का पालन करना, देवगुरु की अथवा महाराजा। वासुदेव श्री कृष्ण, श्रेणिक राजा को भी नरक में जाना ही बहुमानपूर्वक भक्ति करना, सुपात्र को दान देना, तपाराधना करना पडा / अनेक लोग दुःख से घबराकर आत्म हत्या कर बैठते हैं, इससे आदि। कर्मनष्ट नहीं होते हैं, बल्कि परभव भी 2. मनुष्य आयुबंध के कारण- क्रोध बिगड जाता है। आयुष्य कर्म का जब आदि कषायों पर विजय प्राप्त संपूर्ण रूप से क्षय हो जाता है, तब करना, निःस्वार्थ भाव से दान देना, जीव मोक्ष में चला जाता है। विनय, विवेक, सदाचार, दया, प्र.351.अशुभ नामकर्म बंध के कारण परोपकार आदि गुणों को धारण बताओ। करना। 1. किसी के साथ कपट/विश्वासघात 3. तिर्यंच आयुष्य बंध के कारण - करना। किसी के साथ धोखा करना, 2. ज्ञान आदि का मद करना। उपकारी के उपकार को भूलाना, 3. कठोर व असत्य भाषा का प्रयोग व्रत आदि के खण्डित होने पर करना। आलोचना नहीं लेना, दिनभर पशु 4. लोगों में विवाद, क्लेश उत्पन्नकरना। की तरह आहार करना, कपट/ 5. किसी के रूप आदि से ईर्ष्या माया करना, कम-ज्यादा तोलना करना। ** * ***** 120 * ** ********
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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