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________________ बंध के कारण : मक्ति के उपाय प्र.339. ज्ञानावरणीय कर्म बंध के कारण 13.किसी की आँख आदि इन्द्रियों को बताओ। क्षति पहुँचाना। उ. 1. ज्ञान, ज्ञानी और ज्ञानोपकरण के 14.ज्ञान का अभिमान करना। प्रति द्वेष रखना, उनकी निंदा/ प्र.340.ज्ञानावरणीय कर्म की निर्जरा के तिरस्कार/अविनय करना। उपाय बताओ। 2. ज्ञानी से ईर्ष्या करना। उनको उ. 1. बंध के उपरोक्त कारणों का त्याग गिराने की चेष्टा करना। करना। 3. ज्ञान देने वाले का नाम छिपाना। 2. ज्ञान का प्रचार करना। आगम, 4. भगवान की वाणी के विपरीत शास्त्र आदि लिखवाना/प्रकाशित कहना। करवाना। 5. ज्ञान-प्राप्ति में अन्तराय करना। 3. ज्ञान/ज्ञानी के प्रति श्रद्धा रखना। 6. सीखे हुए ज्ञान का पुनरावर्तन नहीं 4. ओम् ही नमो नाणस्स का करना। नियमित जाप करना। 7. अविधि से पढना-पढाना। 5. ज्ञान, ज्ञानोपकरण, ज्ञानी का 8. ईर्ष्या आदि कारणों से अनुकूलता . सम्मान करना। होने पर भी ज्ञान देने से इंकार 6. ज्ञान प्राप्ति हेतु नित्य प्रयत्न करना अथवा उसके बारे में झूठ करना। बोलना। 7. अक्षर लिखे वस्त्र, जूते आदि धारण 9. झूठे मुँह पढना/लिखना/बोलना। न करना। 10.अखबार, पुस्तक, ठवणी, कलम 8. अक्षर लिखे पदार्थ नहीं खानाआदि को पाँव लगाना, यूँक जैसे चॉकलेट, बिस्कुट आदि / लगाना, उनसे अशुचि साफ करना। 9. दूसरों को सद्ज्ञान बांटना। ज्ञान 11.ज्ञानोपकरण को गंदे स्थान पर प्राप्ति में सहायक बनना। रखना, जलाना, नष्ट करना, 10.तीर्थंकर परमात्मा, हरिभद्रसूरि, फैकना आदि। __ अभयदेवसूरि, हेमचंद्राचार्य, अभयकुमार 12.अस्वाध्याय काल में स्वाध्याय आदि ज्ञानी पुरूषोंका स्मरण करना। करना। स्वाध्याय काल में 11.मुझमें सद्बुद्धि का विकास हो, स्वाध्याय न करना। नित्य ऐसी प्रार्थना करना।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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