________________ "प्र.335.आयुष्य कर्म के परिणामों की इससे विपरीत चीजों की प्राप्ति होती व्याख्या कीजिये। है - जैसे अच्छा काम करने पर भी उ. 1. आयुष्य कर्म जीव को नरकादि वाहवाही न होना। दुर्बल-बेडोल निश्चित गतियाँ प्राप्त करवाता है। शरीर की प्राप्ति, अपमान, कर्कश 2. इस कर्म के परिणामस्वरूप जीव स्वर, कुरूपता आदि। किसी भी भव में निश्चितकाल तक प्र.337.गोत्र कर्म के परिणामों को स्पष्ट रूकता है। कीजिये। 3. इस कर्म के फलस्वरूप जीव उर्ध्व, उ. उच्च गोत्र के प्रभाव से व्यक्ति अच्छे, अधो, तिर्यग् दिशाओं में जाने की प्रतिष्ठित, संस्कारी कुल-जाति में शक्ति प्राप्त करता है। जन्म पाता है, समाज-राष्ट्र में सम्मानित प्र.336. नाम कर्म का फलभोग कितने होता है। नीच गोत्र का प्रभाव इससे प्रकार से होता है? विपरीत जानना चाहिये। उ. शुभ नाम कर्म का फलभोग निम्न प्र.338.अन्तराय कर्म के अनुभाव प्रकार से होता है बताईये। 1. सुंदर, सुगठित शरीराकृति प्राप्त उ. अन्तराय कर्म के कारण सुपात्र, होना। सम्पत्ति का सद्भाव होने पर भी दान 2. यश की प्राप्ति। नहीं कर पाता, स्वयं को आवश्यकता 3. लोगों पर प्रभाव। होने पर भी और दाता के मिलने पर 4. प्रिय-मधुर-मनोज्ञ स्वर की भी प्राप्त नहीं कर पाता, पदार्थ/ प्राप्ति। सम्पत्ति/भोजन आदि होने पर भी 5. मान-सम्मान की प्राप्ति। उपयोग नहीं कर पाता, शारीरिक 6. प्रभावशाली व्यक्तित्व की प्राप्ति शक्ति नहीं मिलती अथवा मिलने पर भी धर्म कार्य में उत्साहपूर्वक अशुभ नाम कर्म के फल स्वरूप उपयोग नहीं कर पाता। आदि।