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________________ ज्ञान चक्षुदर्शन एवं उसे आवृत्त बनाता है, आत्मा के हिताहित को करने वाला चक्षुदर्शनावरणीय पहचानने की शक्ति को आवृत्त कर्म कहलाता है। करता है, उसे मोहनीय कर्म कहते 7. चक्षु के सिवाय शेष इन्द्रियों से है। इस कर्म के दो भेद कहे गये हैं - होने वाला सामान्य ज्ञान अचक्षु- दर्शन मोहनीय और चारित्र दर्शन और उसे आवृत्त करने मोहनीय। वाला अचक्षुदर्शनावरणीय कर्म प्र.325.दर्शन मोहनीय और चारित्र कहलाता है। मोहनीय को स्पष्ट कीजिये। 8. मन और इन्द्रियों की सहायता के उ. 1. दर्शन मोहनीय- सुदेव, सुगुरू, बिना रूपी पदार्थों का होने वाला सुधर्म में श्रद्धा करना दर्शन है सामान्य ज्ञान अवधिदर्शन और और उस गुण को रोकने वाला उसे आवृत्त करने वाला अवधि अथवा जिनोक्त तत्व में शंकाशील दर्शनावरणीय कर्म कहलाताहै। बनाने वाला दर्शन मोहनीय 9. सर्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव का कहलाता है। इसकी मिथ्यात्व, सामान्य ज्ञान केवलदर्शन एवं मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय उसे आवृत्त करने वाला केवल नामक तीन प्रकृतियाँ होती हैं। दर्शनावरणीय कर्म कहलाता है। 2. चारित्र मोहनीय- जिसके द्वारा प्र.323.वेदनीय कर्म की व्याख्या कर्म का क्षय होता है, उस कीजिये। आचरण को चारित्र कहते है। उ. सुख-दुःख का अनुभव(वेदन) कराने आत्मा के चारित्र रूपी गुण को वाला कर्म वेदनीय कर्म कहलाता है। रोकने वाले क्रोध, मान, माया, इसके दो भेद कहे गये हैं- सुख का लोभ, वेद, रति, अरति, शोक, भय, अनुभव करवाने वाला शाता वेदनीय जुगुप्सा आदि चारित्र मोहनीय और दुःख का अनुभव करवाने वाला कर्म कहलाते हैं। अशाता वेदनीय कर्म कहलाता है। प्र.326.आयुष्य कर्म किसे कहते है? प्र.324.मोहनीय कर्म की विवेचना उ. जो कर्म जीव को निश्चित काल तक कीजिये। एक भव में रोककर रखता है, वह उ. जो व्यक्ति को मूढ, विवेकहीन आयुष्य कर्म कहलाता है। आयुष्य
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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