________________ कर्म कहलाते हैं। ज्ञानावरणीय, जानने वाला ज्ञान मनःपर्यवज्ञान दर्शना वरणीय, मोहनीय और एवं उसे आच्छादित करने वाला अन्तराय, ये चार घाती कर्म कहे गये कर्म मनःपर्यवज्ञानावरणीय कर्म हैं। शेष मूल गुणों को आवृत्त करने में कहलाता है। असमर्थ होने से. अघाती कर्म 5. सर्व द्रव्य, क्षेत्र, काल व पर्याय कहलाते हैं। (भाव) को आत्मा से जानने वाला प्र.321.ज्ञानावरणीय कर्म की विवेचना ज्ञान केवलज्ञान एवं उसे कीजिये। आच्छादित करने वाला कर्म केवलउ. 1. जो आत्मा के ज्ञान गुण को ज्ञानावरणीय कर्म कहलाता है। आच्छादित करता है, वह ज्ञाना- प्र.322.दर्शनावरणीय कर्म को स्पष्ट वरणीय कर्म कहलाता है। कीजिये। यह कर्म पाँच प्रकार का है - उ. आत्मा के सामान्य बोध को दर्शन 1. मन और इन्द्रियों के द्वारा होने और उसे रोकने वाला दर्शनावरणीय वाला ज्ञान मतिज्ञान और उसे कर्म कहलाता है। आच्छादित करने वाला मतिज्ञाना- इसके नौ भेद कहे गये हैं - 1. पाँच वरणीय कर्म कहलाता है। निंद्रा 2. चार दर्शनावरण। 2. शास्त्र/ श्रवण से होने वाला ज्ञान 1. मंद ध्वनि से जागना निद्रा। श्रुतज्ञान और उसे आच्छादित 2. तीव्र ध्वनि से या हाथ से हिलाने करने वाला कर्म श्रुतज्ञानावरणीय ___पर जागना निद्रा-निद्रा / कर्म कहलाता है। 3. बैठे बैठे या खड़े खड़े नींद लेना 3. मन और इन्द्रियों की सहायता के प्रचला। बिना रूपी पदार्थों का मर्यादा- 4. चलते चलते निद्रा आना प्रचलापूर्वक होने वाला ज्ञान अवधि प्रचला। ज्ञान एवं उसे आच्छादित करने 5. तीव्र राग अथवा द्वेषवश दिन में वाला अवधिज्ञानावरणीय कर्म सोचा हुआ कार्य अथवा अकार्य कहलाता है। निद्रा में करना और स्वयं को पता 4. मन और इन्द्रियों की सहायता के भी न चलना वह स्त्यानर्द्धि / बिना मन के विचारों (पर्यायों) को 6. चक्षु के द्वारा होने वाला सामान्य