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________________ बन गये। दो व्यक्तियों में से एक व्यक्ति 3. निधत्त कर्म- जो कर्म कठोर मजबूरी, लोकलाज के कारण मुनि तपाराधना से नष्ट होते हैं। जैसे को आहार देता है तो सामान्य फल अर्जुनमाली मुनि पूर्व में प्रतिदिन मिलता है परन्तु जो व्यक्ति श्रद्धा सात व्यक्तियों की हिंसा करता और उत्कट उल्लास से मुनि को था परन्तु दीक्षा लेकर उग्र-तीव्र दान देता है, वह विशिष्ट फल प्राप्त तपश्चर्या करके उन कर्मों का क्षय करता है। शुभ कार्य हो या अशुभ किया एवं मुक्त हो गये। कार्य, भावों की मंदता एवं तीव्रता के 4. निकाचित कर्म - जो कर्म भोगे आधार पर फल प्राप्त करता है। बिना नहीं छूटते हैं। जैसे त्रिपृष्ठ वासुदेव श्री कृष्ण ने 18000 मुनियों वासुदेव के भव में महावीर ने को श्रद्धा से वन्दना करके महापापों शय्यापालक के कानों में जो का क्षय किया पर उनके अनुचर ने कथीर (उबलता शीशा) डलवाया, केवल वासुदेव की प्रसन्नता के लिए उस कारण महावीर के भव में वंदन किया अतः उसे सामान्य लाभ उन्हें कानों में खीले ठुकवाने पड़े। ही मिला। इस प्रकार कर्म साम्राज्य प्र.318.महाराजश्री! दो व्यक्ति समान में किसी प्रकार का भेदभाव या रूप से दान देते हैं, उसके पक्षपात नहीं है / जो भेद नजर आता परिणाम स्वरूप एक महाराजा है, वह भावधारा में भेद होने से ही है। बनता है और दूसरा सामान्य फल प्र.319.कर्म कितने प्रकार के कहे गये हैं? प्राप्त करता है, तो क्या कर्म सत्ता उ. आठ प्रकार के को निष्पक्ष कहा जा सकता है? 1. ज्ञानावरणीय 2 दर्शनावरणीय 3. वेदनीय उ. शुभ व अशुभ, किसी भी कर्म के बंधन 4. मोहनीय 5. आयुष्य 6. नाम 7. गोत्र में दो बातें आधारभूत होती हैं, एक 8. अन्तराय। बाह्य प्रवृत्ति, दूसरी आभ्यंतर विचार- प्र.320.घाती और अघाती कर्म में क्या धारा। भले ही बाह्य रूप से दो अन्तर है? व्यक्तियों की क्रिया में समानता उ. अनन्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र और नजर आती है परन्तु भावधारा में भेद शक्ति, ये चार आत्मा के मूल गुण हैं। होने से परिणाम में भी भेद आता है। इन गुणों का घात करने वाले घाती
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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