SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मिल जाना निधत्ति कहलाता है। स्थिति निर्धारित होती है, उसे 10.निकाचना- जिन कर्मों का फल स्थिति बंध कहते है। अवश्यमेव भोगना पडता है, उसे 3. अनुभाग बंध-औषधिमिश्रित कुछ निकाचना कहते है। लड्डू अधिक कडवे अथवा मीठे प्र.316.कोई भी कर्म कितने प्रकार से होते हैं, कई लड्डू कम कडवे बंधता है? अथवा मधुर होते हैं, उसी प्रकार उ. चार प्रकार से - कर्म की फलशक्ति में तीव्रता1. प्रकृति बंध- जैसे मोदक अलग मंदता (न्यूनाधिकता) को अनुभाग अलग प्रकृति वाले होते हैं, वैसे ही बंध कहते है। इसे रसबंध भी कहा कर्म भी अलग-अलग प्रकृति जाता है। वाले होते हैं। सोंठ, काली मिर्च से 4. प्रदेश बंध- कोई लड्डू छोटा होता बना लड्डू वायुनाशक होता है, है और कोई बड़ा, उसी प्रकार हल्दी, मुलहठी से निर्मित लड्डू किसी कर्म के प्रदेश कम और कफ का नाश करता है। जिस किसी के अधिक होते हैं, उसे प्रकार घी, आटा आदि समान होने प्रदेश बंध कहते है। पर भी लड्डू में मिली औषधियाँ प्र.317.कर्म के स्पृष्ट आदि चार प्रकारों अलग-अलग प्रभाव दिखाती हैं, को स्पष्ट कीजिये। उसी प्रकार कर्म बंधन काल में उ. 1. स्पृष्ट कर्म- जो कर्म पश्चात्ताप यह निर्धारित हो जाता है कि वह से नष्ट हो जाते हैं। जैसे मृगावती आत्मा के ज्ञानगुण को रोकेगा या अपने पाप-अपराध के प्रति दर्शनगुण को आच्छादित करेगा पश्चात्ताप करती हुई केवलज्ञान अथवा अन्य किसी गुण को। को प्राप्त हो गयी। 2. स्थिति बंध- जिस प्रकार औषधि 2. बद्ध कर्म- जो कर्म प्रतिक्रमण, मिश्रित कोई लड्डू दो माह तक आलोचना आदि से नष्ट होते हैं। खराब नहीं होता है, कोई एक जैसे अतिमुक्तक मुनि ने पानी में माह तक अथवा एक पक्ष तक पात्र की नैया को तिराकर जो खराब नहीं होता है, उसी प्रकार कर्म बांधा, वह इरियावही करते कर्म बंधन के समय कर्म की जो हुए नष्ट हो गया एवं मुनि केवली
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy