________________ कर्म के पूर्ण होने से पूर्व जीव मर नहीं विशेष से नहीं है। पशुओं में हाथी, सकता और पूर्ण होने के बाद जी बैल, घोड़ा उच्च तथा कुत्ता, सुअर, नहीं सकता। इसके देव - मनुष्य - बिल्ली नीच माने जाते हैं। मनुष्य तिर्यंच और नरक आयुष्य रूप चार तथा देवों में कुछ उच्च तो कुछ नीच भेद होते हैं। होते हैं। प्र.327.नाम कर्म किसे कहते है? परमात्मा महावीर का सिद्धान्त है कि जिस कर्म के कारण जीव विविध नीची जाति में जन्म लेने वाला भी पर्यायों को प्राप्त करता है, उसे नाम आचार-विचार, धर्म-कर्म से उच्च व कर्म कहते है। इस कर्म के उदय से सम्मानीय हो सकता है, जैसे जीव शरीर, गति, रंग, गंध, स्वर, हरिकेशी एवं मेतारज मुनि। .. यश, अपयश, आकृति आदि प्राप्त प्र.329.अन्तराय कर्म किसे कहते है? करता है। नाम कर्म की विवक्षा भेद उ. जिस कर्म के उदय से जीव को दान से 67, 93, 103 प्रकृतियाँ होती हैं, देने में, लाभ प्राप्ति में, भोग, उपभोग जिनका विवेचन प्रथम कर्मग्रंथ से एवं वीर्य (धर्मकार्य) में अन्तराय समझना चाहिये। उत्पन्न होता है, उसे अन्तराय कर्म प्र.328.गोत्र कर्म किसे कहते है? कहते है। इसके पाँच भेद कहे गये जिस कर्म के कारण जीव में हैं दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तउच्च-नीच अथवा छोटे-बड़े का राय, उपभोगान्तराय और वीर्यान्तराय। व्यवहार होता है, उसे गोत्र कर्म कर्म पदार्थ का विशिष्ट-विस्तृत कहते है। इसके उच्च एवं नीच रूप विवेचन प्रथम कर्म विपाक नामक दो भेद शास्त्रों में कहे गये हैं। कर्म ग्रन्थ से जानना चाहिये। गोत्र का अर्थ किसी समूह, जाति