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________________ समुद्र * है। उससे आगे-आगे के बिना इससे बाहर नहीं जा सकता है। - वलयाकार में धातकी-खण्ड, प्र.291.ढाई द्वीप में कुल कितने मेरू कालोदधि समुद्र, पुष्करावर्त द्वीप पर्वत हैं? आदि हैं। उनका विस्तार क्रमशः उ. पांच-एक जम्बूद्वीप में, दो धातकीदुगुना-दुगुना है। असंख्य द्वीप- खण्ड में एवं दो अर्द्धपुष्करावर्त द्वीप में समुद्र वाले मध्यलोक के अन्त में हैं। मेरू पर्वत दस हजार योजन स्वयंभूरमण समुद्र है। चौड़ा और एक लाख योजन प्रमाण (3)जम्बूद्वीप थाली के आकार का एवं ऊँचा है। शेष द्वीप-समुद्र चूड़ी जैसी प्र.292. लोक का आकार कैसा कहा गया आकृति के हैं। प्र.290. क्या इन सभी द्वीप-समुद्रों में उ. कटि (कमर) पर दोनों हाथ रखकर मनुष्य होते हैं? पाँव चौड़े किये हुए मनुष्य जैसा उ. जम्बूद्वीप, धातकी खण्ड एवं अर्द्ध आकार लोक का है। पुष्करावर्त-द्वीप, इन ढाई द्वीपों में प्र.293. जीवों का अल्पबहुत्व बताओ / तथा लवण समुद्र के कुछ भाग में ही उ. इस लोक मेंमनुष्यों का वास है। जहाँ तक मनुष्यों 1. सबसे कम मनुष्य हैं। का वास है, उसे मनुष्य लोक एवं 2. नैरयिक उनसे असंख्य गुणा हैं। समय क्षेत्र कहा जाता है। 3. देव उनसे असंख्य गुणा हैं। जंघाचारण, विद्याचारण मुनियों के 4. सिद्ध उनसे अनन्तगुणा हैं। अलावा कोई भी मनुष्य देव-शक्ति 5. तिर्यंच उनसे अनन्त गुणा हैं।
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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