________________ लोक का स्वरूप प्र.284.लोक और अलोक में क्या अन्तर है? धनुष्य का (गाऊ) उ. जिस क्षेत्र में धर्म, अधर्म, आकाश, 8. चार कोस का - एक योजन पुद्गल, जीव और काल, ये छहों द्रव्य व्यवहार में एक योजन तेरह कि. पाये जाते हैं, उसे लोक कहते है। मी. का होता है। जिस क्षेत्र में आकाशास्तिकाय नामक प्र.288. सम्पूर्ण लोक को कितने भागों में एक मात्र द्रव्य पाया जाता है, उसे बांटा गया है? अलोक कहते है। उ. तीन भागों मेंप्र.285. लोक बड़ा है अथवा अलोक? (1) उर्ध्वलोक- 7 रज्जु में से 900 उ. लोक से अलोक अनन्त गुणा बड़ा है। योजन कम प्रमाण विस्तृत प्र.286. लोक कितने रज्जु प्रमाण है? उर्ध्वलोक में सिद्धशिला एवं उ. चौदह रज्जु प्रमाण / एक रज्जु असंख्य देवलोक स्थित है। कोडाकोडी योजन प्रमाण कहा गया (ii) मध्यलोक- 1800 योजन प्रमाण मध्यलोक में मनुष्य, तिर्यंच, प्र.287.योजन आदि मापदण्डों को ज्योतिष्क, व्यंतर एवं वाणव्यंतर समझाईये। देव स्थित हैं। उ. (1)सुई की नोंक जितने स्थान को (ii)अधोलोक- 7 रज्जु में से 900 घेरती है, उसका असंख्यातवाँ योजन कम क्षेत्र में नारकी, भाग–अंगुल का असंख्यातवाँ भवनपति तथा परमाधामी देव हैं। भाग / प्र.289. मध्यलोक कितना विस्तृत है? 2. छह अंगुल की - एक मुट्ठी उ. (1)1800 योजन मोटा एवं असंख्य 3. दो मुट्ठी की - एक वेंत / योजन लम्बा-चौड़ा है, जिसके 4. दो वेंत का - एक हाथ ठीक मध्य में जम्बूद्वीप है और 5. दो हाथ का - एक दण्ड उसके मध्य में सुदर्शन नामक मेरू 6. दो दण्ड का - एक धनुष्य पर्वत है। 7. दो हजार - एक कोस (2)जम्बूद्वीप के चारों तरफ लवण