________________ की. उष्णता, रूक्षता नष्ट हो जायगी। इसके बाद सात दिन तक वृष्टि बंद रहेगी। (2)क्षीर मेघ- इससे पृथ्वी की दुर्गन्ध नष्ट हो जायेगी / इसके पश्चात् सात दिन तक वर्षा नहीं होगी। (3)घृत मेघ- इससे पृथ्वी में स्निग्धता उत्पन्न होगी। (4)अमृत मेघ- इससे पृथ्वी में धान्य, फल, फूल, आदि की उत्पत्ति होगी। (5)इक्षु रस मेघ- इससे वनस्पति रस एवं मधुरता से परिपूर्ण बनेगी। उनपचास दिनों में यह आश्चर्यजनक शुभ परिवर्तन देखकर, रमणीय, मनोरम एवं हरी-भरी सृष्टि को निहारकर सब लोग बिल से बाहर निकलेंगे। नृत्य करके अपना आनंद अभिव्यक्त करेंगे और परस्पर कहेंगे- आज के दिन पुण्योदय-सौभाग्योदय हुआ है। देखो! यह प्रकृति कितनी सुखदायी और शांतियुक्त हो गयी है। तब वे मांसाहार आदि को छोड़कर खाद्य-पदार्थों का भोग करेंगे और प्रेम से मिलकर अनेक सामाजिक मर्यादाओं का निर्माण करेंगे। वह दिन होगा भाद्रपद शुक्ला पंचमी का, जिस दिन को जैनागमों में सांवत्सरिक पर्व माना गया है। लगातार वर्ण, गंध, रस, स्पर्श आदि में अनंत गुणी वृद्धि होगी। (3)तीसरा आरा- यह आरा अव सर्पिणी के चतुर्थ आरे के समान होगा। इस आरे के तीन वर्ष साढ़े आठ माह बीतने पर नरक से च्यवकर श्रेणिक पद्मनाभ नामक तीर्थंकर बनेंगे। तदुपरान्त क्रमशः सुरदेवादि बावीस तीर्थंकर, ग्यारह चक्रवर्ती, नौ-नौ बलदेव वासुदेव एवं प्रतिवासुदेव जन्म लेंगे। (4)तत्पश्चात् चौथे आरे में अन्तिम तीर्थंकर एवं चक्रवर्ती होंगे। करोड़ पूर्व वर्षों के बाद कल्पवृक्षों की उत्पत्ति होगी। उनसे आहार आदि की प्राप्ति होने से असि, मसि, कृषि कार्य बंद होंगे। बादर अग्नि और धर्म का विच्छेद हो जायेगा ।उसके बाद मनुष्य धर्म का विच्छेद होगा और युगलिक युग का प्रारंभ होगा। (5-6)फिर 5 वां एवं 6ट्ठा आरा अवसर्पिणी के पहले व दूसरे आरे के समान होगा। इसके बाद फिर अवसर्पिणी का प्रारंभ होगा। इस प्रकार यह कालचक्र अनन्तकाल से चल रहा है तथा अनन्त काल तक चलता रहेगा।