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________________ अत्यन्त शीतल एवं सूर्य की किरणे __ इच्छा होगी। क्षुधापूर्ति के लिये अतिशय उष्ण होगी। फल, धान्यादि नहीं होने से वे मच्छ, (3)पृथ्वी का स्पर्श तलवार-धार की कच्छ आदि का आहार करेंगे। तरह तीक्ष्ण-वेदनाकारी एवं सूर्योदय के एक मुहूर्त पश्चात् वे नदी अंगारों के समान अत्युष्ण होगा। में स्थित जलचर जन्तुओं को उसमें फूल, वृक्ष आदि की उत्पत्ति पकड़कर धूल में दबा देंगे। शाम नहीं होगी। तक सूर्य के तीव्र ताप में शकरकंद की (4)ग्राम, नगर, पहाड़, समुद्र, तालाब भाँति स्वतः सिक जायेंगे तब सूर्यास्त आदि सब कुछ विनष्ट हो जायेंगे। के एक मुहूर्त बाद निकालकर लायेंगे, गंगा-सिन्धु नामक दो नदियों में काट-काटकर खायेंगे और कठोररथ की धुरी प्रमाण ही पानी रहेगा। घोर पापकर्मों का संचय करके उसमें भी भयंकर मगरमच्छ आदि प्रायः नरक और तिर्यंच योनि में प्राणी विशेष रूप से उत्पन्न होंगे। . जन्म लेंगे। (5)विष आदि की वृष्टि होने पर यहाँ अवसर्पिणी के छह आरों का भयभीत होकर मनुष्य वैताढ्य वर्णन परिपूर्ण होता है। पर्वत के उत्तर में स्थित प्र.283. उत्सर्पिणी का स्वरूप समझाओ / गंगा-सिन्धु नदियों के आठ किनारों उ. उत्सर्पिणी का स्वरूप अवसर्पिणी के पर जो बहत्तर गुफाएँ हैं, उसमें समान है पर उसका क्रम उल्टा है। निवास करेंगे। अवसर्पिणी में जो बल, आयु, (6)उनकी अवगाहना एक हाथ की, अवगाहना आदि घटते जाते हैं, वे स्त्री की 16 वर्ष की एवं पुरुष उत्सर्पिणी में बढ़ते जाते हैं। की 20 वर्ष की उत्कृष्ट आयु होगी। (1)प्रथम आरा - यह आरा अव(7)वे मनुष्य तीव्र कषायी होने से सर्पिणी के छठे आरे के समान कलह करते रहेंगे। अति होगा / विशेषता यह है कि इसमें काम-लिप्सु होने से उन्हें माँ, क्रमशः आयु, अवगाहना आदि बहिन, बेटी का भी भान नहीं बढ़ती जायेगी। रहेगा। स्त्री पाँच वर्ष की उम्र में (2)दूसरा आरा - इस आरे के प्रारंभ गर्भ धारण कर लेगी। संतान में सात-सात दिन तक पांच अधिक होगी। प्रकार की वृष्टि होगी। . (8) उन जीवों को अपरिमित आहार की (1)पुष्कर संवर्तक मेघ- इससे भूमि
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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