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________________ की होती है। उद्घोषणा करेंगे- जो धर्म-कर्म प्र.281.पांचवें आरे की विवेचना कीजिये। करना हो, वह कर लो, छट्ठा आरा उ. (1)21 हजार वर्ष के इस दुःखपूर्ण लगने वाला है। दुषम आरे में जन्मा जीव मोक्षगामी यह सुनकर दुप्पसहसूरि, साध्वी नहीं होता है, शेष चार गतियों में फल्गुश्री, नागिल श्रावक एवं जाता है। सत्यश्री श्राविका अनशन करके (2)मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, क्षपक स्वर्गवासी हो जायेंगे। श्रेणी, उपशम श्रेणी, सिद्धि गमन (7)अन्तिम दिन आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा आदि दस बातें पंचम आरे में नहीं को प्रथम प्रहर में जैन मत का, होती हैं। दूसरे प्रहर में अन्य धर्मों का, तीसरे (3)पंचम आरे मैं पच्चीस बातें मुख्य प्रहर में राजनीति एवं चतुर्थ प्रहर रूप से घटित होती है- जैसे शहर में अग्नि का लोप/विच्छेद हो गाँव की तरह और गाँव शमशान जायेगा। श्रावण वदि एकम को जैसे हो जाते हैं, कुलीन लोग अतिशय दुःखपूर्ण षष्ठम आरे का दास-दासी की भाँति होते हैं, प्रारंभ होगा। उनका आदर-सम्मान नहीं होता प्र.282.दुषम दुषम आरे की व्याख्या है, दुष्काल, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, कीजिये। रोग, विघ्न बढ़ जाते हैं, उ. (1)21 हजार वर्ष प्रमाण दुःख, अधर्म, झगड़े-मतभेद बढ़ते हैं, गुरु एवं हिंसा और कषाय से परिपूर्ण इस माता-पिता का सत्कार-सेवा घट आरे के प्रारंभ में विष, अग्नि, धूल, जाती है, कुदेवों कुगुरुओं, एवं आदि की भीषण वृष्टियाँ होगी। कुधर्म का अधिक प्रचलन बढ़ जहर से प्राणी मर जायेंगे, अग्नि जाता है, स्त्रियों में लज्जा घट से सब कुछ भस्मीभूत हो जायेगा। जाती है, आदि। प्रलयकारी संवर्तक वायु से भूमि (4)इस आरे के आरंभ में आयु सौ वर्ष अस्त-व्यस्त हो जायेगी। वैताढ्य एवं अवगाहना सात हाथ की थी, पर्वत, ऋषभकूट, गंगा व सिंधुनदी वह घटती हुई अन्त में बीस वर्ष के अलावा समस्त पर्वत, नदी-नाले की एवं एक हाथ की रह जायेगी। महल, घर आदि नष्ट हो जायेंगे। (5)आरे के अन्त में इन्द्र महाराज (2)उस समय चन्द्रमा की किरणें
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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