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________________ लगी। इससे कलह एवं आपसी (4)पूर्व में विवाह प्रथा नहीं थी। एक लड़ाई-झगड़े का जन्म हुआ। स्त्री जिस जोड़े को उत्पन्न करती कुलकरों की हकार-मकार-धिक्कार थी वह उचित समय पर जैसी दण्डनीतियों का भी अतिक्रमण पति-पत्नी में बदल जाता था। होने लगा। तत्पश्चात् नाभिकुलकर आपकी सुमंगला एवं सुनंदा दो की पत्नी मरुदेवी की रत्नकुक्षि से रानियाँ थी, उनसे सौ पुत्र एवं दो प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म पुत्रियाँ हुई / ज्येष्ठ पुत्र भरत प्रथम हुआ। चक्री बने। परिग्रह व कलह के निराकरण हेतु (5)आपने पुरुषों की 72 एवं स्त्रियों की ऋषभकुमार ने असि-मसि-कृषि का ___64 कलाओं का प्रवर्तन किया। प्रवर्तन किया। जम्बूद्वीप के इस भरत (6)इससे पूर्व कोई धर्म नहीं था। आप क्षेत्र में आपने ही समय का तकाजा ही प्रथम साधु, प्रथम जिन एवं समझकर परिवर्तन किये जैसे प्रथम तीर्थंकर बने। परमात्मा (1)पूर्वकाल में राजा नहीं होता था। ऋषभदेव का निर्वाण तीसरे आरे इन्द्रादि ने आपको नृपति पद पर में हुआ। उनके निर्वाण के बाद अभिषिक्त किया तब से तीन वर्ष साढ़े आठ माह व्यतीत राजा-प्रजा का व्यवहार चला। होने पर चतुर्थ आरा लगा। (2)पूर्व में कल्पवृक्षों द्वारा यथेष्ट प्र.280. चौथे आरे का स्वरूप समझाईये। सामग्री प्राप्ति होने से भोजन आदि उ. सुख कम और दुःख ज्यादा ऐसा विधियों का लोगों को ज्ञान नहीं दुषम-सुषम नामक चौथा आरा एक था। तब आपने कृषि, अग्नि आदि कोडा-कोडी सांगरोपम में से 42,000 के माध्यम से अन्न उगाना/ वर्ष जितने कम काल का होता है। पकाना/खाना सिखाया। त्रिषष्ठिशलाका पुरुषों में से 61 (3)पहले कोई पढ़ना, लिखना नहीं शलाका पुरुष इस आरे में हुए- 23 जानता था। काल की मांग तीर्थंकर, 11 चक्रवर्ती, नव-नव समझकर आपने पुत्री ब्राह्मी को बलदेव, वासुदेव एवं प्रतिवासुदेव।। अक्षर (अ,आ,ई आदि) का एवं इस आरे में जीव पांचों गतियों में जाते सुंदरी को अंक (1, 2, 3) का हैं। उत्कृष्ट पाँच सौ धनुष्य की ज्ञान प्रदान किया। अवगाहना एवं आयु एक करोड़ पूर्व
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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