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________________ वह युवा होकर पति-पत्नी में सरस आहार देते हैं। परिणत हो जाता है। एक साथ (8)मण्यंग-स्वर्ण व रत्नमय आभूषण दो-दो का जन्म होने से वे देते हैं। युगलिक कहलाते हैं। (9)गेहाकार-निवास हेतु मनोहर (16) उनकी मृत्यु खांसी, छींक, ___ महल उपस्थित करते हैं। जम्हाई के द्वारा होती हैं तथा (10) वस्त्रांग-बहुमूल्य वस्त्र प्रदान अल्पकषायी होने से मरकर करते हैं। नियमतः देवलोक में जाते हैं। प्र.278. दूसरे आरे के भाव बताओ। प्र.277. कल्पवृक्ष दस प्रकार के होते हैं उ. सुषम नामक इस आरे में दुःख का परन्तु कौन-कौन से? . सर्वथा अभाव होता है परन्तु सुख कल्प अर्थात् इच्छा। इच्छानुसार प्रथम आरे की अपेक्षा कम होता है। पदार्थ देने वाले कल्पवृक्ष कहलाते है। तीन कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण ये वृक्ष स्वाभाविक वनस्पतिकायमय इस आरे में आयु दो पल्योपम की एवं होते हैं। युगलिकों के पुण्य प्रभाव से अवगाहना दो कोस की होती हैं। दो मन-वांछित सामग्री देते हैं। दिन के अन्तर में बेर फल प्रमाण (1)मातंग-शक्तिवर्द्धक फलों का आहार करते हैं तथा सन्तान का 64 रस देते हैं। दिन तक लालन-पालन करते हैं। (2)भाजनांक-स्वर्ण-रजतमय बर्तन शेष बातें प्रथम आरे के अनुरूप है पर देते हैं। सुख में क्रमशः हानि होती जाती है। (3)त्रुटितांग-उनपचास प्रकार के प्र.279. तीसरे आरे का स्वरूप बताईये। बाजे देते हैं तथा विविध उ. दो कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण राग-रागिनियाँ सुनाते हैं। तीसरे आरे में उत्कृष्ट अवगाहना एक (4)दीपांग-दीपक के समान प्रकाश कोस और आयु एक पल्य प्रमाण होती करते हैं। है। एक-एक दिन के अन्तर में भोजन (5)ज्योतिषांग-सूर्यवत् प्रकाशित करने वाले युगलिक मनुष्य 79 दिनों करते हैं। तक पुत्र-पुत्री का पालन करते हैं। (6) कुसुमांग-सुरभिमयी विविध पुष्प- काल प्रभाव से शनैः शनैः कल्पवृक्ष मालाएँ प्रदान करते हैं। घटने से स्वाधिकार एवं संग्रह की (7)चित्ररसांग-विविध प्रकार के दूषित भावनाएँ मन में घर करने
SR No.004444
Book TitleJain Jivan Shailee
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManitprabhsagar, Nilanjanashreeji
PublisherJahaj Mandir Prakashan
Publication Year2012
Total Pages346
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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